पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, एक भक्ता भाई थी उसका कर्मा यह सुंदर नाम था। वह आचार- विचार की रीति-भाँति को नहीं जानती थी, परंतु अपने अपार वात्सल्य-प्रेमवश नित्य प्रातःकाल खिचड़ी बनाकर श्री जगन्नाथ जी को भोग लगाती थी। श्री जगन्नाथ जी स्वयं प्रकट होकर बड़े प्रेम से भोजन करते थे। मंदिर में जितने भोग लगते थे, उनमें ऐसा स्वाद नहीं आता था जैसा कि कर्माबाई की खिचड़ी में था। एक दिन वहां कोई संत पहुंच गये। उन्होंने देखा कि बिना स्नान किये, बिना चौका बर्तन किये ही खिचड़ी बना रही है। संत ने इसे अपराध माना और दुःखी होकर लंबी श्वासें लेकर श्रीकर्मा बाई को आचार विचार के अनुसार पवित्रता पूर्वक खिचड़ी बनाने का उपदेश दिया।
दूसरे दिन संत की बताई विधि के अनुसार कर्माबाई ने खिचड़ी बनाई तो बड़ी देर हो गई। श्री जगन्नाथ जी खिचड़ी खा रहे थे, उधर मंदिर में पंडो ने पट खोले। शीघ्रता से भगवान बिना मुंह धोये चले आये। उनके मुख पर जूठन लगी थी। पण्डों ने देखा। आज भी श्रीजगन्नाथपुरी में कर्माबाई की खिचड़ी का भोग लगता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)