राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मुझे ऐसा बना दो मेरे प्रभु, जीवन में लगे ठोकर न कहीं।जाने अनजाने भी मुझसे, अपकार किसी का हो न कहीं।। उपकार सदा करता जाऊं, दुनियां अपकार भले ही करे। बदनामी न जग में हो मेरी, कोई नाम भले ही दे न कहीं।। तू ही इक ऐसा साथी है, दुःख में भी साथ नहीं तजता। दुनियां प्यार करे न करे, खोऊँ तेरा भी न प्यार कहीं।। जो तेरा बनकर रहता है, कांटो में गुलाब सा खिलता है। कितने ही कांटे पांव चुभे, पर फूल भी हों कांटे न कहीं।। उन्होंने कहा कि मन हो मधु पूर्ण कलश मेरा, आंखों में ज्योति छलकती हो। तुमसे मधु पीने को ऐसा, जगता ही रहूं सोऊँ न कहीं।। मैं क्या हूं क्या मेरा पथ है, यह सत्य सदा मैं समझ सकूं। इस सतपथ पर चलते-चलते, मेरे पांव थके न रुके न कहीं।। युक्ति से पाप-प्रवृत्ति को रोके, परिवार को परमात्मा की ओर प्रेरित करें वही धार्मिक व्यक्ति। युवावस्था में बुराइयों से बचे, संपत्ति और सुख में रहते हुए भी युवावस्था में यदि मन की प्रवृत्ति विषयों में न हो यह वैराग्य है। बचपन एवं युवावस्था में मनुष्य को अधिक अनुभव नहीं होता है। अतः किसी के अनुशासन में रहना चाहिए। किसी भी श्रेष्ठ साधन को भक्ति का साथ न मिले, तो साधक विफल हो जाता है। साधना के पीछे शुद्ध हेतु न हो तो साधक का पतन होता है। तंत्र आदि की साधना से सिद्धियां आती हैं, किंतु उनसे ब्रह्म की अनुभूति नहीं होती। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।