कोरोना के बाद फेफड़े की बीमारियों के खतरों पर होगा शोध

लखनऊ। कोरोना संक्रमण को मात देने के बाद भी मरीजों के फेफड़े पर उसका असर देखा जा रहा है। मरीज के क्षतिग्रस्त फेफड़े की वजह से भविष्य में उनको क्या समस्या होने की आशंका है, केजीएमयू अब इस पर काम करेगा। केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग ने इसके लिए इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर लंग ऑसिलोमेट्री रिसर्च के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। अब रिसर्च की शुरुआत होनी है। केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष प्र्रो. सूर्यकांत ने बताया कि एमओयू के तहत यह रिसर्च तीन भागों में बंटा हुआ होगा। पहले भाग में बच्चों पर होने वाले असर पर अध्ययन होगा, दूसरे भाग में वयस्क और तीसरे भाग में बुजुर्ग शामिल होंगे। इसका मकसद कोरोना संक्रमण के बाद फेफड़ों पर पड़ने वाले असर तथा इससे होने वाली बीमारियों के बारे में पता लगाना है। क्षतिग्रस्त फेफड़ों में भविष्य में होने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी होने पर उनकी रोकथाम तथा उसके इलाज के बारे में पता किया जा सकेगा। केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग ने फेफड़े की कार्यक्षमता जांचने के लिए इंपल्स ऑसिलोमीटर मशीन लगाई गई है। इस मशीन से बच्चों व बुजुर्गों के फेफड़ों की कार्यक्षमता की सटीक जांच की जा सकती है। अभी तक पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट के माध्यम से इसकी जांच होती थी। इसकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इसकी जांच के लिए मरीज को मुंह से फूंकने की जरूरत होती है। बच्चे और बुजुर्ग दोनों ऐसा करने में सक्षम नहीं होते हैं। इसकी वजह से उनके फेफड़े की क्षमता का सही आंकलन नहीं हो पाता है। फेफडे़ की क्षमता का सही आंकलन होने पर दवाओं की सटीक डोज तय हो पाती है। यह शोध अब इसकी अगली कड़ी के रूप में काम करेगा। कोरोना संक्रमण का काफी ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ा है। कोरोना के बाद पोस्ट कोविड में भी मरीज लंबे समय तक इससे परेशान हो रहे हैं। इसको ध्यान में रखते हुए यह एमओयू किया जा रहा है। इससे बच्चों, वयस्क तथा बुजुर्गों के फेफड़ों पर अध्ययन होगा।

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