दून-हल्द्वानी मेडिकल कॉलेजों में 50 हजार रुपये में होगी एमबीबीएस की पढ़ाई
उत्तराखंड। उत्तराखंड के मैदानी जिलों के मेडिकल कॉलेजों में एक बार फिर सरकार 50 हजार रुपये में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू कराने जा रही है। 2019 में मैदानी जिलों के मेडिकल कॉलेजों में जो एमबीबीएस बांड की व्यवस्था खत्म कर दी गई थी, वह दोबारा बहाल होगी। एमबीबीएस के छात्र लगातार सरकारी कॉलेजों में फीस कम करने की मांग कर रहे हैं। इस बीच मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की फीस का मुद्दा उठा। मामले में यह तथ्य सामने आया कि वर्ष 2019 में यह व्यवस्था की गई थी कि बांड से केवल पर्वतीय जिलों के मेडिकल कॉलेजों (श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज) में ही पढ़ाई की सुविधा दी जाएगी। मैदानी जिलों के मेडिकल कॉलेजों दून मेडिकल कॉलेज व हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में बांड की व्यवस्था खत्म कर दी थी। बांड भरकर एमबीबीएस की सालाना फीस 50 हजार रुपये है जबकि बिना बांड चार लाख रुपये फीस है। छात्रों की मांग के बाद मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस बात पर सैद्धांतिक सहमति दी गई कि बांड की व्यवस्था दून और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में दोबारा शुरू की जाएगी। अब इसका प्रस्ताव आगामी कैबिनेट बैठक में लाया जाएगा। प्रस्ताव पर मुहर लगते ही इस साल होने वाली नीट यूजी के दाखिलों में छात्रों को दून और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेजों में भी बांड से 50 हजार रुपये सालाना फीस से पढ़ाई का मौका मिलेगा। दरअसल प्रदेेश में नीट यूजी काउंसिलिंग से सीट आवंटन और पसंदीदा कॉलेजों के परिपेक्ष्य में देखें तो हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज पहली पसंद होता है। इसके बाद दूसरी प्राथमिकता पर श्रीनगर और फिर दून मेडिकल कॉलेज होता है। अगर किसी छात्र ने बढ़िया रैंक के आधार पर हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में सीट पाई है, तो उसे चार लाख रुपये शुल्क देना अनिवार्य है। इससे गरीब घरों के होनहार छात्रों के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई बेहद मुश्किल हो चली है। अगर बांड की व्यवस्था दोबारा लागू हो जाएगी तो निश्चित तौर पर 50 हजार रुपये सालाना में पढ़ाई आसान हो जाएगी। बांड भरने वालों के लिए भी नियम काफी सख्त हैं। मेडिकल कॉलेजों में जूनियर और सीनियर रेजीडेंट डॉक्टरों की कमी को देखते हुए बांड से एमबीबीएस करने वाले छात्रों को पहले एक साल मेडिकल कॉलेजों में सेवा देनी होती है। उसके बाद दो साल तक दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों के प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों पर सेवा देनी हाती है। इसके बाद दो वर्ष तक जिला चिकित्सालयों या दुर्गम के चिकित्सालयों में सेवा की अनिवार्यता होती है।