हिमाचल प्रदेश। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में सेना की ओर से आयोजित स्वर्णिम विजय वर्ष समारोह में 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग की यादें ताजा हो गईं। इस जंग में जिला शिमला के चार जवानों ने बहादुरी दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। जंग में चारों वीर जवानों ने शहादत पाई थी। अनाडेल में बुधवार को हुए समारोह में सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जेएस संधू ने चारों शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की। स्वर्णिम विजय मशाल को सलामी देने के बाद लेफ्टिनेंट जनरल ने चारों शहीदों के परिवारों को सम्मानित किया। सम्मान पाने के बाद सभी चारों शहीदों के परिजन भावुक हो गए। बोले कि हमें सेना पर गर्व है। हमारी सेना की बहादुरी के आगे 1971 में पाकिस्तान 13 दिन भी नहीं टिक पाया था। हमने जंग में अपनों को खोया था लेकिन अब उनकी शहादत पर गर्व होता है। 50 साल में ऐसा सम्मान पहली बार मिल रहा है। लेफ्टिनेंट जनरल जेएस संधू ने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह किसी भी देश की सबसे बड़ी जीत थी। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने हमारे सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। कहा कि हिमाचल योद्धाओं की भूमि है। सेना में यहां से कई वीर जवानों ने बहादुरी दिखाई है। बताया कि बीते साल 18 दिसंबर को स्वर्णिम मशाल दिल्ली से चारों दिशाओं को भेजी गई थी। इनमें एक मशाल शिमला लाई गई है। यहां चार वीर जवानों के घरों की मिट्टी मशाल के साथ दिल्ली ले जाई जाएगी। सेना की ओर से जारी कार्यक्रम के अनुसार 22 अक्तूबर को यह मशाल रिज पर रखी जाएगी। इसके बाद 28 अक्तूबर को वेस्टर्न कमांड कसौली पहुंचेगी। अंत में यह मशाल वापस दिल्ली स्थित वार मेमोरियल ले जाई जाएगी।