अब पाउड्री मिल्ड्यू से तबाह नहीं होगी मटर की फसल…
हिमाचल प्रदेश। प्रदेश के ठंडे इलाकों में मटर की बिजाई करने वाले किसानों के लिए राहत की खबर की है। अब पाउड्री मिल्ड्यू से उत्पन्न होने वाले फफूंद से उनकी फसल खराब नहीं होगी। कृषि विवि के प्लांट पैथोलॉजी विभाग ने इसके लिए रोगरोधी बीज तैयार किया है।दरअसल लाहौल क्षेत्र को गुणवत्ता वाले मटर की पैदावार के लिए जाना जाता है। यहां से हर साल देश के अन्य राज्यों में करोड़ों रुपये का मटर भेजा जाता है। यहां मटर की फसल पाउड्री मिल्ड्यू तबाह कर रहा है। फसल को चौपट करने वाला फफूंद किसानों के लिए पहेली बना था कि आखिरकार यह कैसे पनप रहा है और हर साल किस कारण से फसल को अपनी चपेट में लेता है। देश के नामी कृषि वैज्ञानिकों ने लाहौल में मटर की फसल पर अध्ययन करने के बाद पाया कि पाउड्री मिल्ड्यू कहां से मटर के खेतों में घुसपैठ करता है और यह मटर की फसल ही क्यों बर्बाद करता है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति डॉ. एचके चौधरी और डॉ. अमर सिंह कपूर ने जब पाया कि लाहौल में जब मटर तैयार होता है तो उससे कुछ दिन पहले फसल पर काले धब्बे पड़ने लगते हैं। इतना ही नहीं, इस रोग से मटर की 25 से 40 फीसदी फसल बीमारी की चपेट में आ जाती है। पाउड्री मिल्ड्यू मटर को खराब कर रहा है, परंतु यह कहां से हर साल घुस रहा है। इसका पता लगाना जरूरी था। डॉ. चौधरी कहते हैं कि वैज्ञानिकों की टीम अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पाउड्री मिल्ड्यू फरवरी-मार्च में फिर सक्रिय होता है और मटर की फसल को तबाह करने लगता है। इसके बाद कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने मटर के पाउड्री मिल्ड्यू फफूंद रोधक बीज विकसित करने के साथ दवाओं को विकसित किया। प्लांट पैथोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. डीके बन्याल ने कहा कि पाउड्री मिल्ड्यू के फैलने के कारणों का पता चलने के बाद वैज्ञानिकों ने रोग रोधक मटर के बीज विकसित किए। साथ ही मटर को पाउड्री मिल्ड्यू से बचाने के लिए दवाएं भी विकसित कीं। इसके बाद मटर उत्पादकों ने राहत पाई।