नई दिल्ली। एक महान राष्ट्रभक्त, भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक, दूरदर्शी शिक्षाविद, मूर्धन्य विधिवेत्ता, सफल सांसद, अग्रणी पत्रकार, प्रखर समाज सुधारक एवं लोकप्रिय जननेता भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का योगदान हर क्षेत्र में उत्कृष्ट एवं अद्वितीय रहा है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1861 में प्रयागराज में हुआ था, लेकिन काशी उनकी तपोस्थली बनी। काशी में महामना ने प्राचीन भारतीय शिक्षा के गौरवशाली मंदिर तक्षशिला और नालंदा को पुनर्जीवित करते हुए राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की परिकल्पना को जीवंत स्वरूप देते हुए 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की।
महामना के शिक्षा दर्शन के मूल में छात्र के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास की अवधारणा थी। हर छात्र में राष्ट्रभक्ति, सदाचार एवं चरित्र निर्माण हेतु वे भारतीय संस्कृति, धर्म एवं नीति की शिक्षा के पक्षधर थे। पंडित मदन मोहन मालवीय धर्म को चरित्र निर्माण का सीधा मार्ग एवं देशभक्ति को सवरेत्तम शक्ति मानते थे और उनका मत था कि ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा से अनुप्राणित शिक्षा हमारे छात्रों को दी जाए। महामना का उद्देश्य था कि भारतीय समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिए हमारे शिक्षा संस्थान ऐसे राष्ट्र भक्तों का सृजन करें जो समग्र रूप से विकसित हों तथा मानविकी और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में दक्ष हों और भारतीय संस्कृति और उसमें निहित सुविचारों व मूल्यों को आत्मसात करते हुए चरित्रवान और सुयोग्य नागरिक बनकर देश का नेतृत्व कर सकें।
पंडित मदन मोहन मालवीय प्राचीन भारत की समृद्ध औद्योगिक विरासत को आधार मानकर भारत की भावी औद्योगिक नीति तैयार करने के पक्षधर थे। वर्ष 1916 में जब ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश हुक्मरानों को केंद्र में रखकर भारत में उद्योगों की स्थापना के लिए इंडस्टियल कमीशन की घोषणा की तो महामना ने इस कमीशन तथा ब्रिटिश नीतियों का पुरजोर विरोध किया और अपना असहमति प्रपत्र दिया। प्रपत्र में प्राचीन भारत की औद्योगिक गौरव गाथा का वर्णन और उसकी दृष्टि के आधार पर भावी भारत के औद्योगिक स्वरूप की योजना थी, जिसे बाद में भारत के कई विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर लिया है।