हिमाचल प्रदेश। आप बरसात में रास्तों में यहां-वहां सरकते हुए घोंघे अक्सर देखते होंगे, जो कई बार पांव के नीचे पिस जाते हैं। यह अपने पीछे एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जिसे स्लाइम कहते हैं। यह सामान्य जीव नहीं हैं। इनसे निकले इस चिपचिपे पदार्थ में भूल जाने की बीमारी अल्जाइमर, पागलपन का रोग डिमेंशिया का इलाज करने की क्षमता है।
कटने या जलने से होने वाले जख्मों को ठीक करने या मस्सों को खत्म, चेहरों के गड्ढे भरने वाले रसायन इसमें होते हैं। सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए भी स्लाइम इस्तेमाल हो सकता है।यह जानकारी केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. दीपक पंत ने दी। डॉ. पंत ने बताया कि अपने एक विद्यार्थी वरुण धीमान के साथ उन्होंने हिमाचल में पाई जाने वाली घोंघों की दो प्रजातियों पर अध्ययन किया है।
इनका केंचुओें या मधुमक्खियों की तरह सफल पालन किया गया है। केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर में इनके पालन के लिए पिट बनाए गए। अब विश्वविद्यालय ने तय किया है कि अगर किसान इनका पालन करना चाहते हैं तो उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। डॉ. पंत ने बताया कि घोंघों को नुकसान पहुंचाए बगैर ही इनसे स्लाइम निकाला जा सकता है।