राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कथा का प्रसंग-भक्त चरित्र,भक्त शिरोमणि श्री विभीषण जी की भगवत् शरणाग ऐसा कौन कवि है, जो विभीषण जी की भक्ति का वर्णन कर सके। फिर भी यथामति कुछ कहा जाता है, उसे चित्त लगाकर सुनिये। समुद्र में एक जहाज जा रहा था, वह किसी कारण से अटक गया। अनेक उपाय करने पर भी जब जहाज न चला, तब समुद्र ने रोका है और भेंट चाहता है। ऐसा मानकर नाविकों ने एक दुर्बल पंगु- मनुष्य को बलिदान की तरह समुद्र में बहा दिया। वह मरा नहीं, तरंगों में बहते-बहते लंका टापू में जा लगा। राक्षसों ने उसे गोद में उठा लिया और आनंद से हंसते- किलकाते उसे राजा विभीषण के पास ले गये, उसे देखते ही विभीषण जी सिंहासन से कूद पड़े, उनके नेत्रों से आंसू बहने लगे। उन्होंने कहा-श्री रामचंद्र जी भी इसी आकार के थे,बड़े भाग्य से आज इनका दर्शन हुआ है। प्रभु के पास ले जाता है, वह प्रभु से भी श्रेष्ठ है। सद्गुरु की कृपा से ही बुद्धि में स्थिरता आती है। सद्गुरु की शरण प्रभु के चरणों में पहुंचती है।जो स्वयं मोह में फंसा हो, वह दूसरे को मोह से कैसे छुड़ा सकता है। जो वाणी के बजाय व्यवहार से समझाए, वही सद्गुरु है। संत ही सर्वेश्वर के स्वरूप की पहचान कराते हैं। शरीर का ही नहीं, आत्मा का उपवास प्रभु के पास पहुंचाता है। मन से प्रभु के स्मरण में, उनके चरणों में रहना ही सच्चा उपवास है। उत्सव प्रसाद में तन्मय होने के लिए नहीं, प्रभु में तन्मय होने के लिए है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कल की कथा में अनेकों भक्तों की कथा के साथ- भक्त श्रीकबीर दास जी की कथा हो। श्री दिव्य घनश्याम धाम श्री गोवर्धन धाम कालोनी दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।