गृहस्थ ही मर्यादा का है दर्शन: दिव्य मोरारी बापू

राजस्‍थान/पुष्‍कर। श्रीशिवमहापुराण ज्ञानयज्ञ कथा महामहोत्सव (अष्टम-दिवस) सर्वजनहिताय-सर्वजनसुखाय (भव्य-सत्संग) सानिध्य-परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज (पुष्कर-गोवर्धन) कथा व्यास-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू। कथा स्थल-श्री हनुमान मंदिर, टंकी के पास, जवाहर नगर, हाउसिंग बोर्ड, बूंदी। कथा का समय-दोपहर 2:00 बजे से सायंकाल 6:00 बजे तक। शतरूद्र संहिता।

प्रारम्भ मंत्र में शिव के गृहस्थ स्वरूप की झांकी है। घर-गृहस्थ ही मर्यादा का दर्शन है। शिव के दो पुत्र हैं, ज्यादा पुत्र राजा सगर को हुए, लेकिन उसकी परिणिति राख की ढेर हुई। दूसरी रानी से एक पुत्र, जिससे गंगावतरण का क्रम इस संसार को प्राप्त हुआ। जिसने संसार को स्वर्ग बना दिया। ज्यादा संतान दीमक, मक्खी, मच्छर को होती हैं जो शिवाय गंदगी फैलाने के अलावा और कुछ नहीं करते। ज्यादा संतान से हमारा गृहस्थ असंतुलित होता है।

परिवार का संतुलन बनाये रखना ब्रह्मज्ञान है। मेधातिथि के शिष्यों ने बहुत जिद किया- एक बार ब्रह्मज्ञानी का दर्शन करा दीजिये। बहुत टालने के बाद ऋषि ने कहा चलो देखते हैं। एक व्यक्ति बैल से खेत में काम कर रहा था, उससे पूछा- उसने कहा यह बैल मेरा ब्रह्म है, मैं इसको खिलाता हूं यह मेरे परिवार को कमाकर खिलाता है, ये मुझसे संतुष्ट है और मैं इससे संतुष्ट हूं यही ब्रह्मज्ञान है। आनन्दं वै ब्रह्म। माता पिता का बच्चों में प्रेम,

बच्चों का माता पिता में प्रेम। सबका एक दूसरे में प्रेम और सब अपने दायित्व को निभा रहे हों तो आपका गृहस्थ ब्रह्मज्ञान से भूषित हो जाता है। पत्नी अगर पति में या पति पत्नी में गलती ही निकालता रहेगा तो शिवाय गलतियों की और कुछ नहीं मिलेगा। गृहस्थ वही सुखी रहेगा जो सदैव गलती अपनी और गुण सामने वाले में देखेगा। जो पूर्णरूपेण संतुष्ट नहीं है उसके लिये ब्रह्मज्ञान बहुत दूर की बात है। भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता, तपो न तप्ता वयमेव तप्ता।

कालो न यातो वयमेव याता, तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा।। काल नहीं जा रहा है हम भी जा रहे हैं, हम जीर्ण हुये तृष्णा जीर्ण नहीं हुई। मीरा संतुष्ट है कबीर, सूर, तुलसी संतुष्ट है। साधक ने अपने गुरु से पूछा हम पहुंच गये। साधना की ऊंचाई पर, कोई व्यक्ति पहुँच गया, पा गया अपनी मंजिल इसका क्या प्रमाण है। गुरु ने कहा दूसरे में बुराई और अपने में गुण दिखाई दे तो समझना चाहिये अभी आध्यात्म की यात्रा शुरू ही नहीं हुई।

दूसरे में दोष और अपने में भी दोष दिखाई पड़े तो समझना चाहिये की यात्रा की शुरुआत हो गई, लेकिन दूसरे में गुण और अपने में दोष दिखाई पड़े, बाकी दोष किसी में न दिखाई पड़े, तो समझना चाहिए कि हम अध्यात्म की ऊंचाई पर पहुंच गये। अगर कहीं भी दोष दिखाई पड़ रहा है, तो समझना चाहिए अभी ये दोष हमारे अंदर विद्यमान है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में भगवान शिव के नंदीश्वर अवतार,

भैरव अवतार, शरभ अवतार आदि सभी अवतारों की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,  (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

 

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