नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कई साल से ब्रिटेन में रह रहे भारत के भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को सन 2017 के अवमानना मामले में उन्हें दोषी करार कर चार माह जेल की सजा और दो हजार रुपये का अर्थदण्ड दिया है। इसके साथ ही चार सप्ताह के अन्दर ब्याज सहित चार करोड़ अमेरिकी डालर जमा करने का भी आदेश दिया है। यदि ऐसा करने में वह विफल रहता है तो उसकी सम्पत्तियों की कुर्की की जाएगी।
कोर्ट की यह सख्ती और भगोड़ा कारोबारी के खिलाफ सुनाए गए इस फैसले को अहम माना जा रहा है। न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भट और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने इस प्रकरण में अपना फैसला 10 मार्च को ही सुरक्षित रख लिया था और टिप्पणी की थी। अब सबसे प्रमुख प्रश्न सजा के क्रियान्वयन को लेकर है। शीर्ष न्यायालय ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि आदेश को कैसे लागू किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि माल्या को स्वदेश लाया जाए और इसके लिए दोनों देशों की सरकारों को काम करना है।
ब्रिटेन में भी माल्या के खिलाफ अनेक मुकदमें चल रहे हैं। मुकदमें कब तक चलेंगे, यह अनिश्चित है। इन दिनों ब्रिटेन में भी राजनीतिक संकट की स्थिति है, जहां प्रधान मंत्री बोरिस जानसन ने इस्तीफा दे दिया है और नई सरकार के गठन में अभी समय लगेगा। ऐसी स्थिति में माल्या का प्रत्यर्पण प्रभावित हो सकता है। इस सम्बन्ध में भारत सरकार को ब्रिटेन पर दबाव बनाने की जरूरत है जिससे कि माल्या को वापस लाया जा सके। माल्या के खिलाफ सुनवाई में अब कोई प्रगति नहीं हो सकती।
सोमवार को पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है, जो विजय माल्या को बड़ा झटका है। माल्या पर उनके किंगफिशर एयरलाइन से जुड़े नौ हजार करोड़ रुपये के बैंक ऋण घोटाले में भी शामिल होने का आरोप है। अवमानना के मामले में कैद की सजा अवधि और जुर्माने की राशि अवश्य बहुत ही कम है लेकिन चार हजार करोड़ डालर की राशि जमा करना माल्या के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। बैंकों ने मांग की थी कि विजय माल्या को डिएगो डील में चार हजार अमेरिकी डालर मिले थे, उसे सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा कराया जाय। माल्या ने अपनी सम्पत्तियों के बारे में भी न्यायालय को गलत जानकारी दी थी।