नई दिल्ली। भारत देश की मुद्रा रुपया के लिए मंगलवार का दिन अमंगलकारी रहा। यह एक डालर के मुकाबले पहली बार 80 रुपये से नीचे गिरा है, जो अब तक यह सर्वकालिक निचला स्तर है। यह एक ऐसी ऐतिहासिक गिरावट है जिसे भूला नहीं जा सकता। पिछले कुछ दिनों से जारी रुपया में गिरावट की प्रवृत्ति से इसकी आशंका बढ़ गई थी कि यह प्रति डालर 80 रुपया से पार पहुंच जाएगा और मंगलवार को यह आशंका वास्तविकता में परिवर्तित हो गई।
पिछले सत्र में रुपया 79.97 रुपए प्रति डालर पर बन्द हुआ था। इसके मुकाबले मंगलवार को शुरुआती दौर में ही यह 80.05 रुपए के स्तर पर आ गया। स्वतंत्र भारत में डालर के मुकाबले रुपए में यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। यदि रुपए में मजबूती नहीं आई तो आने वाले दिनों में रुपया और गिर सकता है। इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार को रुपया की मजबूती के लिए कारगर रणनीति बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
ऐसा माना जा रहा है कि रुपए में गिरावट का बड़ा कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेजी, रूस – यूक्रेन युद्ध, विदेशी संस्थागत निवेशकों की लगातार पूंजी की निकासी है, जिसका प्रभाव रुपए के मूल्य पर पड़ा। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी लोकसभा में स्वीकार किया कि 31 दिसम्बर 2014 के रेट के मुकाबले रुपया 25 प्रतिशत तक गिर गया। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के कारण ही ऐसे हालात उत्पन्न हुए हैं।
रुपया में गिरावट का एक अन्य कारण अमेरिका में महंगी 41 वर्षों के रिकार्ड स्तर पर पहुंचना है। रुपया के मूल्य में आई इस भारी गिरावट का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही आम आदमी पर भी पड़ेगा। सभी आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएगी। देश में 80 फीसदी कच्चा तेल आयात होता है। इसके लिए विदेशी मुद्रा का अधिक भुगतान करना पड़ेगा। देश में महंगाई और बढ़ सकती है। आने वाले दिनों में अमेरिकी केन्द्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है। इससे डालर और महंगा हो जाएगा। रुपया की जो स्थिति है उसे देखते हुए सबसे प्रमुख प्रश्न यह है कि रुपए को कैसे मजबूत किया जाय।