अग्नि, सूर्य और चांद से चलता है संसार: दिव्‍य मोरारी बापू

राजस्‍थान। श्रीदिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के पावन अवसर पर सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय (भव्य-सत्संग) श्रीशिवमहापुराण ज्ञानयज्ञ कथा (पन्द्रहवां-दिवस) सानिध्य-श्री घनश्याम दास जी महाराज (पुष्कर-गोवर्धन) वक्ता-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू रहे। श्री मंशापूर्ण भूतेश्वर महादेव मंदिर, सवाई माधोपुर चौराहा, टोंक (राजस्थान) में दोपहर 1बजे से सायंकाल 5 बजे तक कथा हो रहा है। जिसका विषय था- श्रीशिवमहापुराण रूद्र संहिता सतीखंड।

इस मौके पर संत दिव्‍य मोरारी बापू ने कहा कि महामृत्युंजय मंत्र वेद के इस मंत्र प्रसिद्ध मंत्र का श्री दधीचि ॠषि ने जप किया था। उन्‍होने कहा कि यदि इसका विधि- विधान से जप किया जाए, तब मौत को भी जीता जा सकता है। ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। इसके साथ कुछ बीज मंत्र भी जोड़े जाते हैं। त्र्यम्बक जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पिता है। यह संसार,अग्नि,सूर्य और चांद इन तीन तत्वों से चलता है।

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इन तीनों तत्वों के जो स्वामी हैं। ब्रह्मा,विष्णु, महेश इन तीनों से सृष्टि चलती है, तीनों के जो अधिश्वर हैं;सत,रज और तम प्रकृति के तीन गुण हैं, जिनके द्वारा प्रकृति संसार में कार्य करती है, उस प्रकृति के भी जो स्वामी हैं, वह तीन नेत्रों वाले, यजामहे- मैं उनकी पूजा करता हूं। वह शंकर रहते कहां है? सुगन्धिं- जैसे पुष्प की सुगन्धि दिखाई नहीं देती, केवल नाक से अनुभव होता है, जैसे पुष्प में सुगन्धि समाई हुई है, वैसे संसार के कण-कण में जो समाए हुए हैं, उन भगवान् शंकर की हम पूजा करते हैं। पुष्टिवर्धनम्- वे मनुष्य के शरीर को पुष्ट करते हैं, उनकी बुद्धि को पुष्ट करते हैं, वह पुष्टि संबर्धक हैं।

अतः व्यक्ति को भगवान शंकर की समाराधना करनी चाहिए। अगला पद है उर्वारुकमिव वंधनात् मृत्योर्मुक्षीय- उर्वा कहते हैं तरबूज को। तरबूज जब तक कच्चा है तब तक टहनी को पकड़े रहता है और पकने पर छोड़ देता है। हे भोलेनाथ! जो आपका भजन करते हैं, वे व्यक्ति मौत से वैसे ही छूट जाते हैं, बच जाते हैं, जैसे पका हुआ तरबूज अपनी नाल से मुक्त हो जाता है। मृत्योर्मुक्षीय- पके हुए तरबूज की तरह मृत्यु से मुक्त कर देना, मृत्यु से बचा लेना, अकाल मृत्यु का अपहरण कर लेना, यह भगवान् शंकर- महामृत्युंजय का सहज स्वभाव है।

मामृतात्- अमृतात् मा- वह मौत से छुटकारा दिला देंगे लेकिन ईश्वर से अलग नहीं होने देंगे। वह जीव परमात्मा से कभी अलग नहीं होगा जो भगवान् शंकर का सदैव चिंतन, पूजन और वंदन करगा। एक छोटा महामृत्युंजय मंत्र भी है, वह बीज मंत्र के साथ है अर्थात् हे भोलेनाथ- मेरी रक्षा करो! मेरी रक्षा करो! महामृत्युंजय मंत्र के जप से वरदान की प्राप्ति- दाधीचि ने इस महामंत्र का जप किया।

जब उन्होंने इस मंत्र का अखंड जप किया, तब भोले बाबा पिण्डी के अंदर से प्रगट हो गए। भगवान् शंकर महामृत्युंजय का दिव्य, भव्य स्वरूप, पंचमुख, दस भुजा, पन्द्रह नेत्र, भागीरथी गंगा, भाल पर चंद्र, कर्पूर की तरह गौरवर्ण, हाथों में त्रिशूल और डमरु, गले में सर्पों की माला, विभूति लपेटे हुए, बाघम्बर पहने हुए प्रगट हुए और बोले- दधीचे! तुमने बहुत तप किया, महामृत्युंजय का अखंड जप किया, अखंड ध्यान किया, बोले तुम्हें क्या चाहिए? दधीचि बोले- मुझे तीन चीजें दे दो।

मेरी हड्डियां बज्र की बना दो, दूसरा मुझे अजेय बना दो, मैं किसी से पराजित न होऊँ, और तीसरे में किसी के सामने दीन बनकर हाथ न जोड़ूं। यह वरदान मुझे दे दो। भोले शंकर ने उन्हें वे तीनों वरदान दे दिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग , गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश ) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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