पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि स्थूल शरीर-यह श्री गणेश जी की शुभ आकृति है। उनका स्थूलकाय नाम भी प्रख्यात है।विघ्नेश्वर की प्रत्येक बात में ही कोई न कोई बड़ा तत्व निहित है। वे तो विशालकाय हैं। किंतु उनका वाहन मूषक अत्यंत लघुकाय हैं। हाथी को अपना दांत बहुत प्यारा होता है। वह उसे शुभ बनाए रखता है। परंतु हाथी के मस्तक वाले भगवान् गणपति ने क्या किया हैं? अपने एक दांत को तोड़कर उसके अग्रभाग को तीक्ष्ण बनाकर उसके द्वारा उन्होंने महाभारत लेखन का कार्य किया। विद्योपार्जन के लिए, धर्म और न्याय के लिए, प्रिय से प्रिय वस्तु का त्याग करना चाहिए। यही तत्व या रहस्य इससे प्रगट होता है। भगवान को लेखनी जैसे साधन की आवश्यकता नहीं। वे चाहें तो किसी वस्तु को साधन बनाकर उससे लिख सकते हैं। यदि अनंतकोटि ब्रह्मांड नायक परात्पर ब्रह्म भगवान् श्री गणेश जी प्रसन्न हो जायें तो पशु पक्षियों तक के सब कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाते हैं और यदि अप्रसन्न हों तो साक्षात् विश्व के सृष्टा भी उस कार्य को करने में असफल हो जाते हैं। भगवान् गणेश जी साक्षात् परात्पर ब्रह्म है। श्री गणेश जी के चारों भुजाओं में वरदमुद्रा, पांश, अंकुश, मोदक रहते हैं।
पांश मोह का और तमोगुण का चिन्ह माना जाता है और अंकुश प्रवृत्ति तथा रजोगुण का चिन्ह है।मोदक, मोदक का अर्थ आनंद प्रदान करने वाला है। वरदमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है। अर्थात् उनका उपासक रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण- इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर विशेष आनंद का अनुभव करने लगता है। श्री गणेश जी का सिर कटना अहंकार का नाश होना है। हाथी का सिर लगना ज्ञान का परिचायक है। लम्बोदर का तात्पर्य यह है कि- अनेक ब्रह्माण्ड उनके उदर में हैं। श्रुति कहती है-एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति वह परम तत्व एक ही है। तथा धीमान् लोगों के द्वारा अनेक नामों से पुकारा जाता है, किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के पूर्व विघ्न निवारणार्थ एवं कार्य सिद्धयर्थ गणेश जी की आराधना आवश्यक है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।