नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्ल्यूएचओ) की अवसाद से जुड़े आंकड़ें न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती भी है। दुनिया भर में अवसाद एक आम बीमारी बन चुकी है, जिसकी मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ता है। आंकड़ों के अनुसार इस बीमारी से विश्व की 3.8 प्रतिशत आबादी प्रभावित है। इसमें पांच प्रतिशत वयस्क और 5.7 प्रतिशत 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोग शामिल हैं।
भारत की लगभग 36 प्रतिशत आबादी अवसाद बीमारी की शिकार है, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार अवसाद के चलते हर साल दुनियाभर में 70 लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर लेते हैं। इसमें 15 से 29 सालकी उम्र के लोगों की संख्या सबसे अधिक है। मानसिक अवसाद के कारण युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है। युवा वर्ग कुंठाग्रस्त क्यों हो रहा है, यह शोध का विषय है। इस पर गम्भीरता से विचार करने और इसके निराकरण की दिशा में ठोस और सार्थक कदम उठाने की जरूरत है।
अवसाद के कारणों पर विचार करें तो आजकल की तेजी से बदलती जीवनशैली एक प्रमुख कारण है, जिसमें व्यक्ति खुद को समायोजित करने में विफल है। जीवन की मूलभूत आवश्यकता खाने और सोने के समय में अनियमितता, साथ ही काम का दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियां और अन्य कारणों से व्यक्ति अकेलापन महसूस करता है जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ता है। पूरी दुनिया में हर साल करीब 28 करोड़ लोग अवसाद के शिकार हो जाते हैं।
अवसाद से बचने के लिए एकमात्र सरल और उपयोगी साधन नहर और नदियां हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में नदियों के महत्व को दर्शाया गया है। हिन्दू धर्म सनातन धर्म है जो पूरी तरह विज्ञान पर आधारित है, जिसे धर्म के रूप में विश्लेषित किया गया है। हाल में ही किए गए शोध में यह दावा किया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालने के लिए नहरों और नदियों के किनारे टहलना एक बेहतर विकल्प है। अवसादग्रस्त लोग नहरों- नदियों के किनारे जाकर बेहतर महसूस करते हैं, जिससे नकारात्मक विचार दूर होते हैं। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। युवाओं को विशेषकर नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए।