धर्म ही है सबसे बड़ा धन: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सबसे बड़ा धन क्या है? श्री कृष्णः “धर्म ईष्टं धनम्” अर्थात् धर्म ही बड़ा धन है, सनातन धर्म की मान्यता है कि असली सुख अर्थ में नहीं धर्म पालन में है। धर्म ही लोक और परलोक में सच्चा सुख प्राप्त कराता है। वैसे भी धर्म से ही अर्थ, काम और मोक्ष मिलते हैं। धर्मो रक्षति रक्षितः। धर्म की रक्षा करने वाले की धर्म रक्षा करता है। जिसने धर्म का पालन कर लिया उसने ईश्वर और मोक्ष को पा लिया। श्री वाल्मीकि ने श्री राम को विग्रहवान धर्म बताया है। अर्थात् श्री राम मूर्तिमान धर्म है। जो उन्होंने किया वही धर्म का स्वरूप है। धर्म पालन से ही भजन की योग्यता मिलती है। सभी धनवान, बलवान, बुद्धिमान होना चाहते हैं परंतु कुछ ही बन पाते हैं। भजन तभी होगा यदि जीवन में धर्म होगा। धर्म की पूंजी मानव को ईश्वर के लंबे मार्ग पर यात्रा में सफल करती है। भर्तृहरि जी ने कहा है कि धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे,नारी गृहे मित्रजनः श्मशाने। देहश्चितायां परलोकमार्गे,धर्मानुगो गच्छति जीव एकः। अर्थात् शेष सब कुछ यहीं रह जाता है, केवल धर्म ही परलोक तक जीव का साथ देता है।अठारह पुराणों के रचयिता वेदव्यास कहते हैं- ऊर्ध्वबाहू विरौम्येष न च कश्चित् श्रृणोति माम्। धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते। अर्थात मैं भुजा उठाकर घोषणा करता हूं कि यदि तुम अर्थ, काम के पिपासु हो तो सुनो, अर्थ और काम की प्राप्ति धर्म से ही हो सकती है। अतः धर्म का सेवन करो। जब धृतराष्ट्र को धर्माचार्यों ने धर्म का स्वरूप समझाया तो वे बोले, मैं धर्म जानता हूं पर मेरी इस और प्रवृत्ति नहीं होती, अधर्म भी जानता हूं पर उधर से निवृत्ति नहीं होती। दुर्योधन ने धर्म का त्याग किया परंतु पांडवों ने पालन किया और विजय प्राप्त की। रावण ने धर्म को छोड़ा तो धन भी नष्ट हो गया। धर्म अंत में ईश्वर से मिलाता है। पाण्डव परीक्षित को राज्य देकर हिमालय के मार्ग से स्वर्ग चले, तो द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन, भीम, एक-एक गिरते और समाप्त होते गये। युधिष्ठिर अकेले जा रहे थे कि कहीं से एक कुत्ता आकर उनके साथ चलने लगा। युधिष्ठिर ने उसके शरीर में कीड़े देखें और उसका दुःख दूर करने की सोची। वह युक्ति सोच ही रहे थे कि यदि कीड़े निकाल कर फेंकता हूं तो कीड़ों की हत्या होती है और नहीं निकालता हूं तो कुत्ता पीड़ा से मर सकता है। तभी धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने निर्णय लिया। युधिष्ठिर जी ने अपनी जंघा में पत्थर से घाव किया और कुत्ते के शरीर से कीड़े निकालकर अपने घाव में रख लिये। इस प्रकार कीड़े भी जीवित रहेंगे, कुत्ता भी पीड़ा से मुक्त हो गया। उसी समय कुत्ता लुप्त हो गया और साक्षात् धर्म प्रगट हो गया तथा युधिष्ठिर को उसके त्याग और धर्म पालन का साधुवाद दिया। आकाश में देवता इस अद्भुत दृश्य को देखकर गद्गद होकर पुष्प वर्षा करने लगे। अंत में धर्म युधिष्ठिर से बोले, प्रिय युधिष्ठिर! तुमने जीवन में कितना संग्रह किया, कितने नगर बसाये, जीवन में धन, जन, मित्र, बंधु जोड़े। जो एक राजा कर सकता है वह सब तुमने किया परंतु तुम्हारे साथ कुछ भी तो नहीं है। तुम अकेले मृत्यु के मार्ग पर हो। मैं धर्म, केवल धर्म ही तुम्हारे साथ चल रहा हूँ। भाव यही है कि मृत्यु के समय और परलोक में धर्म को छोड़कर कुछ भी आदमी के साथ नहीं जाता। अतः प्रत्येक प्राणी धर्म करे, धर्म के लिये जिये और धर्म के लिये मरे। आदमी यहाँ रिश्ते बन्धन जुटाता है। इन्हीं के लिये सारी जिंदगी मिटाता है। पर वह अकेला छोड़ता है जहान। धर्म ही उसके अंत में साथ जाता है। धर्म, इतिहास साक्षी है कि जिन लोगों ने धर्म निभाया, ईश्वर और यश को पाया और जो आज निभा रहे हैं, वह अवश्य ही ईश्वर और लक्ष्य की प्राप्ति करेंगे। अतः अर्थ नहीं, धर्म संचय करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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