लखनऊ। लविवि के प्रो. रविकांत के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करने से हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इंकार कर दिया है, हालाकि पीठ ने अपने आदेश में यह जरूर कहा है कि उनके विरुद्ध जिस आरोप के तहत एफआईआर दर्ज हुई है, उसमें अधिकतम सजा सात वर्ष से कम है।
लिहाजा उनके खिलाफ सीआरपीसी की संबंधित प्राविधानों के मुताबिक ही कार्यवाही की जाए। जस्टिस अरविन्द कुमार मिश्रा, प्रथम एवम जस्टिस मनीष माथुर की पीठ ने यह आदेश प्रो. रविकांत की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ थाना हसनगंज में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।
10 मई को दर्ज इस एफआईआर के मुताबिक उस पर समुदायों के बीच नफरत उत्पन्न करना, सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना, शांति भंग करने के लिए भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमानजनक बातें कहना व वर्गों के बीच शत्रुता उत्पन्न करना तथा 66 आईटी एक्ट के उल्लंघन का आरोप है।
पीठ का कहना था कि एफआईआर देखने से याचिकाकर्ता के विरुद्ध संज्ञेय अपराध बनता है। लिहाजा एफआईआर को खारिज नहीं किया जा सकता है। पीठ ने इस आधार पर एफआईआर खारिज करने की मांग को नामंजूर कर दिया।