योग। अल्जाइमर मस्तिष्क के सिकुड़ने (एट्रोफी) के कारण होती है। उम्र बढ़ने के साथ इस रोग के जोखिम भी बढ़ जाते हैं। अल्जाइमर रोग को डेमेंशिया के सबसे आम कारणों में से एक माना जाता है। डेमेंशिया में सोच, व्यवहार और सामाजिक कौशल की क्षमता काफी कम हो जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि जीवनशैली को स्वस्थ रखने के उपाय करके तंत्रिकाओं से संबंधित इन समस्यों के जोखिम को कम किया जा सकता है।
ब्लड प्रेशर और शुगर के लेवल को कंट्रोल करने के साथ स्वस्थ आहार और नियमित योग-व्यायाम की आदत आपको इस तरह की समस्याओं से बचाने में मददगार हो सकती है। सभी उम्र के लोगों को दिनचर्या में योग-व्यायाम को जरूर शामिल करना चाहिए जिससे इस तरह की बीमारियों के खतरे को कम किया जा सके। आइए जानते हैं कि किस प्रकार के योगासनों का नियमित अभ्यास अल्जाइमर-डेमेंशिया के जोखिम से बचाने में मददगार हो सकता है?
उज्जायी प्राणायाम :-
मन को शांत करने और तंत्रिकाओं को आराम देने में जिन योगासनों के अभ्यास को सबसे कारगर माना जाता है, प्राणायाम उनमें से एक हैं। कुछ प्रकार के प्राणायाम को दिनचर्या में शामिल करके अल्जाइमर-डेमेंशिया के जोखिम को काफी कम किया जा सकता है। प्राणायाम में सांस पर ध्यान केंद्रित करना होता है जिससे एकाग्रता बढ़ती है और तंत्रिकाओं को आराम मिलता है। इसके लिए उज्जायी प्राणायाम और कपालभाति के अभ्यास की आदत बनाई जा सकती है।
पश्चिमोत्तानासन योग :-
पश्चिमोत्तानासन योग को पेट कम करने और मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए बहुत प्रभावी माना जाता रहा है, इसके तंत्रिकाओं से संबंधित समस्याओं में भी विशेष लाभ पाया जा सकता है। यह योगासन मन को शांत करता है और सिर में रक्त के प्रवाह को बढ़ाने में भी मदद करता है। इससे दिमाग को आराम मिलता है और अनिद्रा, अवसाद और चिंता कम होती है।
वज्रासन योग :-
वज्रासन योग का नियमित अभ्यास न केवल मन को शांत और स्थिर रखने में मदद करता है बल्कि पाचन अम्लता और गैस जैसी समस्याओं को भी दूर करने में मददगार हैं। वज्रासन एक ऐसा योग आसान है और इसे सभी उम्र के लोग आसानी से करके लाभ पा सकते हैं। अल्जाइमर के खतरे से बचाने के लिए इस योग का अभ्यास मददगार हो सकता है। जांघ की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और पीठ दर्द से राहत दिलाने में भी इस योग के विशेष लाभ हैं।