पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ध्रुव-चरित्र बहुत पावन चरित्र है। ध्रुव और प्रहलाद बहुत उच्च कोटि के भक्त हैं। सुनीति पतिव्रता है, उत्तानपाद महाराज ने सुनीति को छोड़ दिया, सुरुचि के घर रहने लगे क्योंकि सुरुचि ने महाराज को ऐसे अपने जाल में फंसाया कि उनका मन सुनीति की ओर से हट गया। जब मन की रुचि जोर मारती है तब नीति तो अपने आप हट जायेगी। लेकिन सुनीति पतिव्रता है। सुनीति कहती हैं, महाराज ने भले ही हमें छोड़ दिया पर मैं महाराज को नहीं छोडूंगी। वह मुझे अपने पास न आने दे,
कोई पीड़ा नहीं, लेकिन मुझे दूर से ही उनका दर्शन होता रहा तो भी मैं अपने जीवन का गुजारा कर लूंगी। जैसे लायक शिष्य अपने गुरु को नहीं छोड़ता, लायक पुत्र अपने माता-पिता को नहीं छोड़ता, इसी तरह पतिव्रता भी अपने पति को नहीं छोड़ती। सुरुचि सुनीति को महाराज के पास भी नहीं आने देती। सुनीति दूर से ही दर्शन कर लेती है। दासी के कमरों में रहने के लिए उन्हें अलग जगह दे दी गई है। एक शेर जौ का आटा और साल भर के लिए चार वस्त्र, इतने में ही गुजारा कर रही हैं। सुनीति सहन करती हैं, यह समझ कर कि हमने पूर्व जन्म में किसी को दुःख दिया होगा, इसीलिए आज हमें दुःख मिल रहा है।
काहु न कोउ सुख-दुःख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता।।
व्यक्ति जो दूसरे को दुःख देता है, वही भोक्ता है। खेत को जो किसान देता है वही वापिस मिलता है। हमारे मन रूपी किसान ने शरीर रूपी खेत में कर्म रूपी जैसे बीज बोये हैं, वैसा ही तो काटना है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)