पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, आज से सात सौ वर्ष पहले भगवान ने नानीबाई का छप्पन करोड़ का मायरा भरा। भगवान ने पूरे अंजार नगर में सोने-चांदी, पन्ना-पुखराज, मणि-माणिक्य, पैसा-रुपया,धन-धान्य की बरसात करा दिए और अपने भक्त नरसिंह मेहता से भी भगवान ने पूरे नगर को सब कुछ दिलवाया। भगवान अपने भक्तों का कार्य अवश्य करते हैं। इस प्रसंग से भक्त और भगवान दोनों की महिमा बढ़ी। श्री नरसी जी ने गांव भर के आबाल वृद्ध सभी नर-नारियों को सुंदर मूल्यवान वस्त्र और आभूषण पहनाये, उससे सब लोग शोभामय हो रहे थे। श्री नरसी जी की उदारता एवं कीर्ति यत्र-तत्र-सर्वत्र सभी लोग गानकर रहे थे। बड़ा भारी आश्चर्य तो यह हुआ कि उस चिट्ठे में लिखी सोने-चांदी की दो शिलायें भी आयी और समधी और समधिन के लिए विशेष भेंट के रूप में प्रदान की गयी। संयोगवश एक स्त्री का नाम सूची में लिखने से रह गया था। उसे पहनावा नहीं मिला। उसने दूसरे से लेना स्वीकार नहीं किया और कहा कि जिसने सब स्त्री-पुरुषों को वस्त्र आभूषण पहनाये है मैं भी उसी के हाथ से लूंगी। श्री नरसी जी की पुत्री ने अपने पिता से प्रार्थना की कि- इसे भी पहनावा दीजिए, जिससे कि मेरी लज्जा रह जाये।
श्री नरसी जी ने प्रभु से प्रार्थना की, तो भगवान फिर आये। वस्त्रादि देकर उसकी कामना पूर्ण किए। अपने पिताजी के प्रभाव को देखकर उनकी पुत्री अपने अंग में फूली नहीं समाती थी। इस संसार में सभी का कार्य पूर्ण परमात्मा ही करते हैं। व्यक्ति का पूर्ण प्रयास, ईश्वर की प्रार्थना और प्रतीक्षा यही सफलता के तीन सूत्र हैं। प्रयास, प्रार्थना और प्रतीक्षा। किसी भी कार्य के लिए व्यक्ति को पूर्ण प्रयास करना चाहिए। केवल प्रयास से ही कार्य नहीं हो जाता। प्रयास के साथ-साथ ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए, ताकि ईश्वर की सहायता से कार्य पूर्ण हो। थोड़ी प्रतीक्षा भी करना चाहिए, तो कोई भी कार्य अपूर्ण नहीं रह सकता। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)