लोकसभा में वंदे मातरम पर चर्चा, पीएम मोदी बोले- ये शक्ति चेतना का प्रवाह…

Parliament: वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा की गई. पीएम मोदी के संबोधन से लोकसभा में चर्चा की शुरुआत की. इस दौरान पीएम मोदी ने आजादी से लेकर आपातकाल तक का जिक्र किया. पीएम ने कहा कि देश को आजादी वंदे मातरम की वजह से मिली.

त्याग और तपस्या का मार्ग

पीएम मोदी ने चर्चा के दौरान कहा, ‘जिस मंत्र ने, जिस जयघोष ने देश के आज़ादी के आंदोलन को ऊर्जा और प्रेरणा दी थी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था, उस वंदे मातरम् का पुण्य स्मरण करना इस सदन में हम सबका बहुत बड़ा सौभाग्य है. हमारे लिए यह गर्व की बात है कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं और हम सभी इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं.’

आजादी के लिए युवाओं का एक मंत्र था वंदे मातरम्

पीएम मोदी ने कहा- खुदीराम बोस, रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लहरी, रामकृष्ण विश्वाश जैसे अनगिनत नाम हैं, जिन्होंने वंदे मातरम् कहते-कहते फांसी के फंदे को अपने गले लगा लिया. जिन पर जुल्म हो रहे थे, उनकी भाषा अलग-अलग थी, लेकिन ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ इन सबका मंत्र था. गोपाल बाल जैसे युवाओं ने देश के लिए बलिदान दिया. मास्टर सुरसेन को 1934 में फांसी दी गई. तो उन्होंने अपने साथियों को पत्र लिख और उसमें एक ही शब्द था- वंदे मातरम्.

अंग्रेजों ने वंदे मातरम् पर कठोर कानून बनाया

पीएम मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् गीत को लेकर अंग्रेजों ने कठोर कानून बनाए. सैकड़ों महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में योगदान दिया. बारीसाल में वंदे मातरम् गाने पर सर्वाधिक जुल्म हुए थे. आज बारीसाल भारत का हिस्सा नहीं रहा. उस समय वहां की माताएं, बहनें, बच्चे वंदे मातरम् के स्वाभिमान के लिए मैदान में उतरे थे. तब बारीसाल की वीरांगना श्रीमती शांति घोष ने कहा था, ‘जब तक ये प्रतिबंध नहीं हटता है,मैं अपनी चूड़ियां निकाल देती हूं. तब चुड़ियां निकालना बहुत बड़ी बात होती थी.’

बंगाल की गलियों में लगातार वंदे मातरम् के लिए प्रभात फेरियां निकलती थीं. लोग कहते थे कि वंदे मातरम् कहते-कहते अगर ये जीवन भी चला जाए तो धन्य हो जाएंगे. बंगाल की गलियों से निकली आवाज देश की आवाज बन गई 1905 में हरितपुर के गांव में छोटे-छोटे बच्चे जब वंदे मातरम् के नारे लगा रहे थे, तो अंग्रेजों ने उनपर कोड़े बरसाए. 1906 में नागपुर में नील सीटी स्कूल में बच्चों पर यही जुल्म हुआ. हमारे जांबाज सपूत बिना किसी डर के फांसी के तख्ते पर चढ़े थे.’

1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया

पीएम मोदी ने कहा कि अंग्रेज जानते थे कि बंगाल टूट गया तो देश टूट जाएगा. इसलिए 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, लेकिन उन्होंने जब ये पाप किया तो वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा. बंगाल की एकता के लिए ये गीत गली-गली का नाद बन गया था. वहीं नारा प्रेरणा देता था. अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन के साथ ही भारत को कमजोर करने के बीज और ज्यादा बोने की शुरूआत की थी.

उन्होंने कहा कि बंगाल का विभाजन तो हुआ, लेकिन एक बहुत बड़ा स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ. तब वंदे मातरम् हर तरफ गूंज रहा था. बंकिम दा ने जो यह भाव तैयार किया था, उन्होंने इस गीत के द्वारा अंग्रेजों को हिला दिया. सोचिए अंग्रेज कितने कमजोर हुए होंगे तो उन्हें इस गीत पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर होना पड़ा. उन्होंने इसे गाने, छापने पर बैन लगा दिया.

अंग्रेजो ने ‘बांटो और राज करो’ का रास्ता चुना

पीएम मोदी ने कहा- इन भारतीय ने तब करोड़ों देशवासियों को यह एहसास कराया कि लड़ाई जमीन के टुकड़े के लिए नहीं है, सिर्फ सत्ता के सिंहासन पर कब्जा के लिए नहीं है. वंदे मातरम् का जन-जन से जुड़ाव था, यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम की लंबी गाथा दर्शाती है. क्या कभी किसी ने सोचा है कि आजादी के पूरा पड़ाव वंदे मातरम् से होकर गुजरता है. ऐसा भव्य काव्य शायद दुनिया में कहीं बना होगा.

उन्होंने कहा कि अंग्रेज समझ गए थे कि भारत में लंबे समय तक टिकना उनके लिए संभव नहीं है. उन्हें लगा जब तक भारत को बांटेंगे नहीं, भारत के टुकड़े नहीं करेंगे, तब तक यहां राज करना मुश्किल है. अंग्रेजों ने ‘बांटो और राज करो’ के रास्ते को चुना और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया. वे जानते थे कि एक वक्त था तब बंगाल का बौद्धिक सामर्थ्य देश को ताकत देता था.

वंदे मातरम् महान सांस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार

पीएम ने कहा- वंदे मातरम् महान संस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार है. बंकिम दा ने जब वंदे मातरम् की रचना की, तो वह स्वाभाविक की स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बन गया. हर भारतीय का संकल्प बन गया.

पीएम ने कहा- “त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी, कमला कमलदलविहारिणी, वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्, नमामि कमलाम्, अमलाम्, अतुलाम्, सुजलां, सुफलां, मातरम्”

CPI नेता डी राजा के बयान पर दी प्रतिक्रिया

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) महासचिव डी राजा के बयान पर सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा, “यह उनकी अपनी विचारधारा और निजी सोच हो सकती है. भाजपा को न केवल देश के सामने मौजूद जटिल समस्याओं पर विचार करना चाहिए, बल्कि उनके समाधान के लिए योजना भी बनानी चाहिए. आज हमारे देश में यही स्थिति है…”

बंकिम चंद्र ने 1875 में लिखा था, आनंदमठ में छपा था

भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम् को बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के पावन अवसर पर लिखा था. यह 1882 में पहली बार उनकी पत्रिका बंगदर्शन में उनके उपन्यास आनंदमठ के हिस्से के रूप में छपा था.

1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने मंच पर वंदे मातरम् गाया. यह पहला मौका था जब यह गीत सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर गाया गया. सभा में मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम थीं.

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