नफरत और क्रोध हमारा स्‍वरूप नहीं: दिव्‍य मोरारी बापू  

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि हरि भजन बिना सुख शांति नहीं, चाहे धर्म हो, चाहे पूजा हो, चाहे प्रवचन हो, चाहे कथा श्रवण हो, सत्संग हो। ये सब अपने स्व में स्थिर होने के साधन हैं। जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो अपने स्वरूप में स्थिर होते हैं। नफरत करते हैं तो अपने स्वरूप से दूर होते हैं। हृदय दिया है प्रेम करने के लिये।

चौबीस घंटे प्रेम से हरे भरे रहो। ऐसा करना सम्भव है। चौबीस घंटे नफरत करना, सम्भव ही नहीं है। चौबीस घंटे क्रोध करना सम्भव नहीं है, मगर चौबीस घंटे शांत रहना संभव है। चौबीस घंटे प्रेम करना संभव है।

प्रेम व्यापक हो जाये, अनंत हो जाये, सर्व के लिये हो जाये, प्राणी मात्र के लिये हो जाये तो संतत्व को प्राप्त करते हैं।

क्रोध कोई हमारा स्वरूप नहीं है। नफरत हमारा स्वरूप नहीं है। स्वरूप में स्थिर होते हैं जब हम प्रेम करते हैं। स्व से हम दूर चले जाते हैं, जब हम क्रोध करते हैं। इसीलिए काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर आदि को शत्रु कहा है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

		

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