Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि राग-द्वेष से ही जीवन, मृत्यु- इच्छा और द्वेष से मोह पैदा होता है। जिससे मोहित होकर प्राणी भगवान से बिल्कुल विमुख हो जाता है और विमुख हो जाने से बार-बार संसार में जन्म होता है।
मनुष्य को संसार से विमुख होकर केवल भगवान में लगने की आवश्यकता है। मनुष्य शरीर विवेकप्रधान है, अतः मनुष्य का प्रवृत्ति और निवृत्ति पशु पक्षियों की तरह न होकर अपने विवेक की अनुसार होना चाहिए।परन्तु मनुष्य अपने विवेक को महत्व न देकर राग और द्वेष को लेकर ही प्रवृत्ति और निवृत्ति करता है, जिससे उसका पतन होता है।
मनुष्य की दो मनोवृत्तियां हैं-एक तरफ लगाना और एक तरफ से हटाना। मनुष्य को परमात्मा में तो अपनी वृत्ति लगाना है और संसार से हटाना है। अर्थात् परमात्मा से तो प्रेम करना है और संसार से वैराग्य करना है। परन्तु इन दोनों वृत्तियों को जब मनुष्य केवल संसार में ही लगा देता है, तब वही प्रेम और वैराग्य क्रमशः राग और द्वेष का रूप धारण कर लेता है, जिससे मनुष्य संसार में उलझ जाता हैऔर भगवान से सर्वथा विमुख हो जाता है। फिर भगवान की तरफ चलने का अवसर ही नहीं मिलता।
कभी-कभी तो वह सत्संग की बातें भी सुनता है, शास्त्र भी पढ़ता है, अच्छी बातों पर विचार भी करता है, फिर भी उसके मन में राग के कारण यह बात गहरी बैठी रहती है कि मुझे तो सांसारिक अनुकूलता को प्राप्त करना है और प्रतिकूलता को हराना है। यह मेरा खास काम है, क्योंकि इसके बिना मेरा जीवन निर्वाह नहीं होगा। इस प्रकार वह हृदय में दृढ़ता से राग द्वेष को पकड़े रखता है और वृति राग-द्वेष द्वन्द को नहीं छोड़ती। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।