कुछ सीखने के लिए एकनिष्ठता और धैर्य की है आवश्यकता: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि अगर अहंकार करना ही है तो ऐसा कीजिए कि मैं भारतीय हूँ और भारत मेरा देश है। मैं भारत के लिए पैदा हुआ हूँ और भारत में ही मरूँगा। हम भारत के लिए जियें और मरें। इसे कहते हैं, शुद्ध अहंकार। जितना आप सत्कर्म करते जाएंगे, आप स्वयं पवित्र होते जायेंगे। यही पवित्रता है कि आप अच्छे कर्म कीजिये, अच्छे विचार रखिये, शरीर का सदुपयोग कीजिये। अपनी वाणी का सदुपयोग कीजिये। इस प्रकार हम यदि धर्म की रक्षा के लिये निरंतर प्रयत्न करते रहेंगे तो हम अपने लक्ष्य तक निस्संदेह ही पहुँच सकते हैं। हमारे भीतर मनुष्यता है। हमारे भीतर मानसिक शक्ति है। अगर शक्ति नहीं है तो तपश्चर्या से हम पा सकते हैं। शक्ति पाकर हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। यही है भारतीय संस्कृति। आज विद्यालयों में एक विषय वेद विद्या का अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए। इसका अध्ययन होना ही चाहिए। अगर सब लोग नियम बना लें और अध्ययन करें तो पूरा विश्व आपका संस्कृति परिवार बन जायेगा। संकल्प शक्ति चाहिये, इच्छा शक्ति चाहिए, पूरा विश्व आप उठा सकते हैं, क्योंकि यह युवावस्था होती ही इसीलिये है, स्वामी विवेकानंद जी ने यही तो बताया है कि जो कुछ भी करना है, युवावस्था में ही करो। देश की रक्षा युवानी में हो सकती है, युवानी में ही समस्त विद्याओं का अध्ययन हो सकता है, यश प्राप्त किया जा सकता है, परोपकार किया जा सकता है। इसलिए युवानी को कल्पवृक्ष की तरह बनाया है, ऊपर वाले ने। हमें चिन्तन करना है, उस परम आनंद का जिससे हम पूरे भारतवर्ष को स्वर्ग बना पायेंगे। हम पूरे विश्व के गुरु थे, हमसे आकर दुनियां वाले सीखेंगे, कुछ पाएंगे। इसके लिए एकनिष्ठता और धैर्य की आवश्यकता है। चरित्र में दृढ़ता पैदा करनी चाहिए। बचपन में जैसे संस्कार डालेंगे वैसे ही संस्कार पड़ते चले जाएंगे। बालकों में ऐसे संस्कार डालने चाहिये कि उसे ज्ञात हो कि यह मेरा देश है, मुझे इसके लिए ही जीना है। ऐसी दृढ़ भावना जगाने की आवश्यकता है।सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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