वाराणसी। संगीत की दुनिया में बनारस घराना अपनी अलग पहचान रखता रहा है। कबीरचौरा से रामापुरा तक पुराने बनारस के इर्द-गिर्द फैले क्षेत्र में शताब्दियों से दिन-रात इन घरानों से सुर-संगीत की राग-रागिनियां देश ही नहीं दुनिया को आनंदित कर रही हैं। गायन, वादन और नृत्य के लिए बनारस घराना मशहूर है। विश्व संगीत दिवस पर बनारस घराने की कहानी से रूबरू कराते हैं। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य का कहना है कि बनारस घराना 200 साल पहले पं. रामसहाय के प्रयास से विकसित हुआ था। पंडित राम सहाय ने पिता के संग पांच वर्ष की आयु से ही तबला वादन आरंभ किया था। नौ वर्ष की आयु में ये लखनऊ आ गए एवं लखनऊ घराने के मोधु खान के शिष्य बन गए। जब राम सहाय मात्र 17 वर्ष के ही थे, तब लखनऊ के नए नवाब ने मोधु खान से पूछा कि क्या राम सहाय उनके लिए एक प्रदर्शन कर सकते हैं, कहते हैं, कि राम सहाय ने सात रातों तक लगातार तबला-वादन किया जिसकी प्रशंसा पूरे समाज ने की। कुछ समय उपरांत राम सहाय ने पारंपरिक तबला वादन में कुछ बदलाव की आवश्यकता महसूस की। अगले छह माह तक ये एकांतवासी हो गए और इस एकांतवास का परिणाम सामने आया, जिसे आज बनारस-बाज कहते हैं। ये बनारस घराने की विशिष्ट तबला वादन शैली है। इस नयी वादन शैली के पीछे प्रमुख उद्देश्य था कि ये एकल वादन के लिये भी उपयुक्त थी और किसी अन्य संगीत वाद्य या नृत्य के लिये संगत भी दे सकती थी। इसमें तबले को नाजुक भी वादन कर सकते हैं।
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