वाराणसी। यूं तो जेल का नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में सबसे पहले दुर्दांत अपराधियों की तस्वीर सामने आती है, लेकिन जिला कारागार चौकाघाट में देश के भविष्य की नींव रखी जा रही है। चार साल की रूही (काल्पनिक नाम) ने जब से होश संभाला है, तब से उसने स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन उसकी फर्राटेदार अंग्रेजी का बड़े-बड़े लोहा मानते हैं। पांच साल का रोहन (काल्पनिक नाम) गणित में इतना तेज है कि बिना कैलकुलेटर उंगलियों पर कठिन हिसाब भी जोड़ लेता है। ऐसे छह से सात बच्चे जो कभी जेल की चहारदीवारी से बाहर नहीं निकले वह अपने ज्ञान से सभी का ध्यान खींच रहे हैं। यह सब संभव हो पाया है, जिला कारागार में बंद महिला बंदियों की प्रतिभा से। जो इन छह से सात बच्चों की अलग से पाठशाला चला रही हैं। यहां 102 महिला बंदी बंद हैं। इनमें से अधिकतर पढ़ी लिखी हैं। साथ ही कला कौशल में भी पारंगत हैं। वहीं कोई बच्चा अपनी मां तो कोई दादी के साथ सुबह और शाम जेल में लगने वाली पाठशाला में हाजिरी लगाता है। अबोध बच्चों को साथ लेकर जेल में परवरिश कर रही माता और दादी को मासूमों के भविष्य की भी चिंता है। दो साल पहले तक कुछ बच्चे बंदी रक्षकों के साथ बाहर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने भी जाते थे, लेकिन कोरोना काल में स्कूल बंद होने से इन मासूमों को जेल के अंदर ही शिक्षा दी जा रही है।