राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्रत्येक प्राणी दुःख के भंवरजाल में उलझा हुआ है। आज करोड़पति धन की सुरक्षा के लिये चिन्तित है, तो रंकपति धन के अभाव से दुःखी है। विवाहित व्यक्ति अपनी कलह कारिणी पत्नी व परिवार से दुःखी है तो कोई विवाह न होने के कारण से परेशान है। निःसंतान अभिभावक अपनी सूनी गोंद के कारण दुःखी है, तो बेटे वाला बाप अपनी उच्छृंखल संतान से परेशान है। इसलिए दुःख व सुख न तो अभाव में है और न ही अतिभाव में है। दुःख का मूल कारण है अपना अज्ञान, अपना असंतोष, व अपनी आसक्ति। यदि बिस्तर पर जाने के बाद कोई वस्तु याद आये, तो समझना कि उसमें मन उलझा है। लोभी का मन द्रव्य में फंसा रहता है, जिसके मन में सुख की बहुत कामना है, ऐसे मनुष्य का मन संसार के सुखों में उलझा रहता है। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि बिस्तर में पड़ने के बाद अतिशय प्रिय वस्तु का उसे स्मरण होता है। मन जहां फंसा है, स्वप्न में भी वही दिखाई देता है। स्वप्न से मन की परीक्षा होती है। यमुना-तट पर लौकिक बातें करना पाप है। यह भक्ति का समय है, यह संसार का सुख पाने का समय है। इस प्रकार का भेदभाव रखने वाला प्राणी भक्ति नहीं कर सकता। यह संसार ब्रह्म-स्वरूप है, ऐसा मानने पर ही राग द्वेष नष्ट होते हैं। याचक को न देना मृत्यु के समान है। याद करोगे तो भगवान् अन्तकाल में दौड़ते हुए आयेंगे। भगवान से यही कहो कि वे अन्त समय अवश्य आयें।सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर राजस्थान।