लखनऊ। करीब 52 साल पहले 19 जुलाई 1969 को देश के 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। पचास करोड़ रूपये से ज्यादा की पूंजी वाले निजी बैंकों का तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इसी तरह 15 अप्रैल 1980 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 200 करोड़ की पूंजी वाले छह निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। इसके बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 20 हो गई। 1993 में न्यू बैंक ऑफ इंडिया का पीएनबी में विलय होने के बाद सरकारी बैंकों की संख्या 19 रह गई। साल 2019-20 में 13 बैंकों का आपस में विलय करके पांच बैंक बनाए जाने के बाद सरकारी बैंकों की संख्या सिमट कर केवल 11 रह गई है। ऑल इंडिया बैंक आफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डीएन त्रिवेदी ने कहा कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ग्रामीणों के भाग्य ही बदल गए। राष्ट्रीय स्तर पर विकास के समान अवसर उपलब्ध होने से राष्ट्रीय एकता में बहुत मदद हुई। साल 1969 के पहले जहां अमेरिका में गेहूं आयात करना पड़ता था, वहीं आज सरकारी गोदाम अनाज से भरे हैं। कृषि क्षेत्र में यह विकास केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों के दम पर संभव हो सका है। सरकारी क्षेत्र के बैंक प्रति वर्ष लाखों बेरोजगारों को नौकरी और रोजगार प्रदान करते हैं। वहीं यह भी सच है कि बाद में बैंकों का राजनीतिक उद्देश्य के लिए दुरूपयोग किया गया। नई एकाउंटिंग व्यवस्था लागू कर दी गई, जिससे कुछ बैंकों की तत्काल एनपीए के कारण नुकसान हुआ।
इस वर्ष फरवरी में बजट भाषण ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तो सरकारी बैंकों के निजीकरण के सभी दरवाजे खोल दिए हैं और नीति आयोग ने निजीकरण के लिए बैंकों के नाम भी प्रस्तावित कर दिए हैं। यदि राष्ट्रीयकरण को उलटने का फैसला किया गया तो यह देश के लिए और इसके जमाकर्ताओं के लिए बेहद घातक कदम होगा।