राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्रायः सभी को ऐसा अनुभव होता है कि संसार है। इसमें विचार यह करना है कि संसार प्रतिक्षण बदल रहा है, नाश की ओर जा रहा है- यह भी सबका अनुभव है। जब संसार प्रतिक्षण बदलता है तो फिर वह है कैसे और यदि है तो फिर बदलता कैसे हैं अतः वास्तव में है, रूप से परमात्मा का ही अनुभव होता है। संसार निरंतर बदलता है और परमात्मा कभी नहीं बदलता। अतः संसार को न देखकर, परमात्मा को देखो, यह तत्वज्ञान है। आपको जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि सभी अवस्थाओं के बदलने का अनुभव होता है, पर अपने बदलने का अनुभव कभी नहीं होता। शरीर बदलता है, बालक से बूढ़ा हो जाता है, पर आप वही रहते हैं। इस प्रकार शरीर आदि से अपने को अलग अनुभव करना ही ज्ञान है और उनसे अपने को मिला हुआ अनुभव करना ही अज्ञान है। संसार की कोई भी वस्तु अच्छी या खराब नहीं होती, अपितु उसका उपयोग अच्छा-खराब होता है। सदुपयोग करने से वस्तु अच्छी हो जाती है और दुरुपयोग करने से वस्तु खराब हो जाती है। धन, विद्या, शक्ति आदि दुष्ट के पास हो तो वह दुनिया का नुकसान करता है, पर यही यदि सज्जन के पास हो तो दुनिया का भला करता है। मनुष्य शरीर बढ़िया नहीं है, अपितु उसका सदुपयोग बढ़िया है। धन बढ़िया नहीं है, उसका सदुपयोग बढ़िया है। बाहर से देखें तो दरिद्री और त्यागी संत दोनों समान है, दोनों के पास धन आदि पदार्थ नहीं है। परन्तु दरिद्री दुःख पाता है और त्यागी सुख। बड़े-बड़े राजा लोग भी त्यागी के पास जाते हैं, दरिद्री के पास नहीं। धनिक भी सुख शांति के लिए त्यागी संतों के पास क्यों जाते हैं, सुख शांति पाने के लिए धनी साधुओं के पास जाते हैं, साधु धनियों के पास नहीं जाते। सुख है सदुपयोग में। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।