राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्राणी मात्र की चाह होती है कि मुझे सुख की प्राप्ति हो, सत्य की प्राप्ति हो, मेरे जीवन में दुःख न हो। यह जो मांग है, यह खराब नहीं है। यह चाह स्वाभाविक है, क्योंकि जीवन में जब तक शांति नहीं है, तब तक सुख की और सत्य की कल्पना भी हम नहीं कर सकते। किंतु उस सुख की प्राप्ति के लिये, उस शांति को पाने के लिये आवश्यकता है शुद्ध की। हम बुद्धि को हर क्षेत्र में बहुत लगाते हैं, किंतु शुद्धि के लिये हमारा सक्रिय प्रयास ही नहीं है। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज के माध्यम से भगवान श्री राम कहते हैं कि निर्मल मन जन सो मोहि पावा भगवान् कहते हैं कि जिसका मन निर्मल है, जिसके जीवन में शुद्धि है, मलिनता नहीं है वे मुझे प्राप्त करते हैं, अर्थात् मेरा अनुभव कर सकते हैं। याद रहे, भगवान के अनुभव का अर्थ है, शांति का अनुभव, सुख का अनुभव, आनंद का अनुभव, सत्यं, शिवं और सुंदरम् का अनुभव। हमें राम चाहिए, हमें श्री कृष्ण चाहिए, सुख, सत्य, आनंद और शांति के लिए भीतर उठने वाली चाह भगवान की ही चाह है, यह अंश का अंशी के प्रति आकर्षण है। भगवान् अंश है, जीव अंशी है। जीव के भीतर परमात्मा के प्रति आकर्षण मौजूद रहता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।