पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जो आत्माराम होता है, वह विषयों की झूठी मृगतृष्णा के पीछे पागल नहीं बनता, वह सदैव अपने आनंद में मग्न रहता है। जिसे स्वात्मानंद का अनुभव हो जाए, उसका जीवन सफल हो जाता है। आत्मा ही आनंद है। आत्मा आनंद से परिपूर्ण है। आत्मा को बाहर के आनंद की कोई आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता इंद्रियों को होती है। इंद्रियों में बैठे हैं देवता,
वे देवता इंद्रियों में जगाते हैं भूख और इंद्रियों से होता है विषयों का सेवन, स्वाद लेते हैं देवता और बंधन में आ जाती है आत्मा। यह सिद्धांत है। इन्द्रिय द्वार झरोखा नाना। तहं तहं सुर बैठे करि थाना।। आवत देखहिं विषय बयारी। तिन हठ देहिं कपाट उघारी।। क्यों इन्द्रिय सुरन न ज्ञान सुहाही। विषय भोग पर प्रीत सदाही।। श्रीलक्ष्मीनारायण भगवान की जय।