पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सत्संग में एक प्रश्न आया है कि उच्च कोटि के भक्त ईश्वर को किस तरह से मानते हैं? तो उत्तर आया की सबमें ईश्वर को देखना और सब को ईश्वरमय देखना, ये उच्च कोटि के भगवद्भक्तों का लक्षण है। जो ईश्वर से प्रेम करते हैं, ईश्वर के भक्तों से मित्रता करते हैं, बच्चों पर कृपा करते हैं और द्वेष करने वालों की उपेक्षा करते हैं, वे मध्यम कोटि के भक्त हैं। और सामान्य कोटि का भक्त सिर्फ ईश्वर की आराधना करता है और भगवान् के भक्तों की उपेक्षा करता है। यह संसार ईश्वर की माया है। इसमें अपने-पराये के भाव से ऊपर उठना चाहिये। राग-द्वेष के भाव से ऊपर उठना चाहिए। यहां सबके अपने कहलाने वाले एक परमात्मा ही है, जो अनादि काल से अपने हैं, आज भी हैं और अनादिकाल तक रहेंगे। बाकी अपने कहलाने वाले कब पराये हो जाएं कोई पता नहीं है। सबके साथ मिलकर चलो,चार दिन की जिंदगी है। ईश्वर में ही अपना मन लगाकर रखो। जिसके मन में कर्म फल की इच्छा न हो, वासना न हो, और जो सदा भजन में लगा रहता है, वह श्रेष्ठ भक्त कहलाता है। जिसको अपनी जाति का अभिमान न हो, अपने आश्रम का अभिमान न हो, जिसको अपने शरीर का अभिमान न हो, वह भगवान को बहुत प्यारा लगता है। ऊंची कोटि के भक्त का एक बहुत अच्छा लक्षण है, त्रिभुवनविभवहेतवेऽप्यकुण्ठ स्मृतिरजितात्मसुरादिभिर्विमृग्यात्।।आधे पल के लिये भक्त ईश्वर से मन हटा ले तो उसे तीन लोक का राज्य दे देंगे, ब्रह्मा यदि ऐसा प्रलोभन दें, तो ऊंची कोटि का जो भक्त होगा, वह तीन लोक की संपत्ति को ठुकरा देना, आधे पल को भी ईश्वर को नहीं भूलेगा। हम आप लोग तो सौ-पचास रूपये के लिये ही भगवान् को भूल जाते हैं । लेकिन ऊँची कोटि के भक्त यदि भगवान को भूलना चाहे लेकिन भूल न पाये। भगवान् उसके हृदय से निकलना चाहे लेकिन निकल न पायें, उसको श्रेष्ठ भक्त कहते हैं। ऐसी स्थिति में भक्त और भगवान् दोनों मजबूर हो जाते हैं , एक दूसरे को छोड़ नहीं सकते। भक्त और भगवान् दोनों एक दूसरे को भूल नहीं सकते हैं। ऐसा भक्त उच्च कोटि का वैष्णव है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)