पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जहां आनंद ही ढेर-ढेर हो रहा हो उसे रास कहते हैं। श्रीधर स्वामी जी श्रीमद्भागवत की सबसे सर्वोत्कृष्ट टीका श्रीधरी टीका में रास के संदर्भ में कहते हैं, “दर्प कंदर्प ह” कामदेव का मान मर्दन करने के लिये भगवान् ने महारास आयोजन किया। जीव और ब्रह्म के मिलन को रास कहते हैं।माया के तीन गुण है सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। ये पूरी सृष्टि माया की त्रिगुणात्मका सृष्टि है। तीन गुणों तक माया का प्रभाव है। इन तीन गुणों से पार होने के बाद ही जीव भगवान के को प्राप्त कर पाता है। प्रीतिर्न यावत्मयि वासुदेवे न मुच्यते देहयोगेन तावत, भागवतरा महिं केवल प्रेम पियारा। जानि लेहु जो जाननिहारा। मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किये जोग जप ज्ञान विरागा। रामायण संसार का प्रेम अर्थात् माया मोह जीव को संस्कृति के चक्कर में डालने वाला है और ईश्वर का प्रेम जीव को जन्म मरण के चक्र से छुड़ाकर ईश्वर की प्राप्ति कराने वाला है। पूजा-पाठ, ध्यान-ज्ञान, कथा- भागवत अध्यात्म के जितने साधन हैं ये संसार की विस्मृति के साधन है। संसार का विस्मरण होते ही ईश्वर का स्मरण प्रारंभ हो जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से जब कोई व्यक्ति शत् प्रतिशत् भगवान के चिंतन में लगा है इसी को महारास कहते हैं। जीव और ब्रह्म का मिलन ही रास है। अगर कोई भक्त के जीवन में भगवान का सुमिरण इतना गहरा हो जाय कि वह अपने आप को भूल जाय इसीको महारास कहते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।