पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि साधारण मानव का अपना कर्तव्य क्या है? वह इस बात को नहीं जानता, क्योंकि कभी सत्संग नहीं किया। धर्म और ईश्वर जीवन में तब आयेगा, जब आप सत्संग करेंगे। श्रीविष्णुमहापुराण में इस बात पर बहुत जोर दिया गया है कि आंखों से दिखने वाली वस्तु का भी तब तक बोध नहीं होता, जब तक किसी से उसका नाम सुना न जाए। माताएं, जब बच्चा थोड़ा बड़ा होने लगता है, थोड़ा बोलने लगता है, अभी के-जी- में, नर्सरी में भी नहीं जाता, तब माँ सिखाती है, यह नाक है, यह आंख है, यह कान है, यह मुंह है, यह हाथ है। माताएं सिखाती है, अर्थात् अपने अंगों के नाम का भी हमको ज्ञान न हो, यदि हमें कोई सिखाये नहीं, सुनाये नहीं। यह आम है,
यह सेव है, यह संतरा है, यह केला है, इसका बोध हमें कब हुआ, जब हमने किसी से पहले सुना। श्रीविष्णुमहापुराण में कहा गया है कि आंखों से दिखने वाली वस्तु का भी तब तक बोध नहीं होता, जब तक उसके बारे में हम सुन न लें, फिर आंखों से न दिखने वाले ईश्वर और धर्म का बोध बिना सुने कैसे हो जाएगा? इसलिए पहले आप सुनने की आदत बनाओ। शब्द में अर्थ है, जल का अर्थ पानी होता है। शब्द पढ़ा, उसको शब्द का बोध तो हो जाएगा, लेकिन अर्थ का बोध नहीं होगा। अर्थ का बोध कब होता है? जब व्यक्ति सुनता है। अर्थ के बारे में जब व्यक्ति सुनेगा, जल यानि पानी, पंकज यानि कमल, यह बहुत पढ़ना पड़ता है। पढ़ते-पढ़ते ही जैसे शब्द का अर्थ प्रगट होता है, इसी प्रकार कथा सुनते-सुनते परम तत्व भगवान् का बोध भी प्राप्त हो जाया करता है इसीलिए सुनना चाहिए।।