राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि पितृभक्ति पातिव्रत्य, समता, अद्रोह और विष्णुभक्ति रूप पांच महायज्ञ है। श्रीपद्ममहापुराण में भगवान व्यास के शिष्यों ने प्रश्न किया कि- गुरुदेव! संसार में पुण्य से भी पुण्यतम और सब धर्मों में उत्तम कर्म क्या है, किसका अनुष्ठान करके मनुष्य अक्षय पद को प्राप्त करता है, मृत्युलोक में निवास करने वाले सभी लोग जिसका अनुष्ठान कर सकें। व्यास जी बोले- शिष्यगण! मैं तुम लोगों को पांच धर्मों के आख्यान सुनाऊंगा। इन पांचों में से एक का भी अनुष्ठान करके मनुष्य सुयश, स्वर्ग तथा मोक्ष भी पा सकता है। माता-पिता की पूजा, पति की सेवा, सबके प्रति समान भाव, मित्रों से द्रोह न करना और भगवान श्रीविष्णु का भजन करना- ये पांच महायज्ञ हैं। माता-पिता की पूजा करके मनुष्य जिस धर्म का साधन करता है, वह इस पृथ्वी पर सैकड़ों यज्ञों तथा तीर्थयात्रा आदि के द्वारा भी दुर्लभ है। माता-पिता धर्म है, माता-पिता स्वर्ग हैं, और माता-पिता ही सर्वोत्कृष्ट तपस्या है। माता-पिता के प्रसन्न हो जाने पर संपूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। जिसकी सेवा और सद्गुणों से माता-पिता संतुष्ट रहते हैं, उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा स्नान का फल मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी है और पिता संपूर्ण देवताओं का स्वरूप है। इसलिए सब प्रकार से यत्न पूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों दीपों से युक्त समूची पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता को प्रणाम करते समय जिसके हाथ, घुटने और मस्तक पृथ्वी पर टिकते हैं वह अक्षय स्वर्ग को प्राप्त होता है। जब तक माता- पिता के चरणों की रज पुत्र के मस्तक और शरीर में लगती रहती है, तभी तक वह शुद्ध रहता है। जो पुत्र माता-पिता के चरण कमलों का जल पीता है, उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। वह मनुष्य संसार में धन्य है। जो पुरुष माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन करता है, वह महाप्रलय पर्यंत नर्क में निवास करता है। जो रोगी, वृद्ध, जीविका से रहित, अंधे और बहरे पिता को त्यागकर चला जाता है, वह रौरव-नरक में जा पड़ता है। माता-पिता की सेवा न करने से समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है। माता-पिता की आराधना न करके पुत्र यदि तीर्थ और देवताओं का सेवन भी करे तो उसे उसका फल नहीं मिलता। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्रीघनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के पावन अवसर पर, श्रीपद्ममहापुराण कथा के तृतीय दिवस बावन भगवान की कथा का गान किया गया। कल की कथा में अन्य अवतारों की कथा का गान किया जायेगा।