पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि प्रारब्ध को मिटाने की अद्भुत क्षमता शिव में है। सभी देवता हैं लेकिन यदि प्रारब्ध के लिखे हुए को मेटना (बदलना) हो, वह भगवान् शंकर ही कर सकते हैं। श्री गोस्वामी श्री तुलसीदास जी लिखते हैं- जौं तप करै कुमारी तुम्हारी। भाविउ मेटि त्रिपुरारी।। भगवान् शंकर प्रारब्ध को बदल सकते हैं। बारह वर्ष की आयु में मार्कण्डे की मृत्यु निश्चित थी। उन्होंने महामृत्युंजय का जप किया और वह भगवान् शंकर की कृपा से अमर हो गये। मार्कण्डे आज भी हैं। होनी को बदलना बहुत कठिन है, प्रारब्ध को मेटना बहुत कठिन है लेकिन भगवान् शंकर में यह सहज क्षमता है कि वह होनी को भी बदल देते हैं। प्रारब्ध को बदल देते हैं। इसलिए भोलेनाथ का चिंतन यदि निरन्तर होता रहे, तब आपके जीवन की बहुत सारी ऐसी घटनाएं जिनसे जीवन में बहुत बड़ा संकट आ सकता था टल जाती हैं। तप करने से सारे काम सिद्ध होते हैं। दुनियां में जिसको जो भी सिद्धियां मिलती हैं, सब तप के आधार पर मिलती हैं। तप के द्वारा सब कुछ हो सकता है। दुर्लभ से दुर्लभ कार्य की सिद्धि तप से ही मिलती है।
जपात् सिद्धिर् ,जपात् सिद्धिर् , जपात् सिद्धिर् न संशयः। साधक के लिए तप अनिवार्य है। जप करना भी एक तप है। शास्त्रों में अनेक प्रकार के तपों का वर्णन है। निरन्तर नाम का जप करना भी एक तप है। इसको भी एक यज्ञ कहा गया है। त्यागी तपस्वी संत महात्मा पंचांग्नि नित्य तपते हैं। चारों कोनों में आग जलाकर बीच में बैठ गये, ऊपर से सूर्यनारायण की गर्मी पड़ रही है, इसको पंचाग्नि कहा जाता है। शरीर के पांचों तत्वों की शुद्धि के लिए पंचाग्नि तापी जाती है। इससे पहले श्रीशिवमहापुराण में वर्णन आ चुका है कि पूर्व पाप और पश्चाताप में भी शरीर को पीड़ा है, तप करने में भी शरीर को पीड़ा है, परमात्मा के नाम से कष्ट सहन करना तप कहलाता है। इंद्रियों को विषयों से मोड़ना और मन को ईश्वर से जोड़ना, इसका नाम तप होता है। जो इंद्रियों को विषयों से जोड़कर रखते हैं, उनके लिए पत् शब्द है। तप का उल्टा पत् होता है। पत् से संस्कृत में पतति बनता है और पतति का अर्थ होता है नीचे गिरना। तप् से तपति बनता है, तपति का अर्थ है- ऊपर उठना। जो तपेगा वह ऊपर उठेगा। शिष्टाचार, सदाचार, कर्तव्य का पालन, ईश्वर की आराधना, सेवा यह सब तप है।और जो आलस्य, निद्रा, तंद्रा, व्यसन और बुराइयों में लीन रहेगा, वह पतति नीचे गिरेगा। ऊपर उठने के लिए देव, दानव, मानव सबने तप किया है। जिस प्रकार सोने की खोट निकालने के लिए, उसे तपाना ही एक साधन है। उसी प्रकार माया की खोट निकालने के लिए, माया की खोट मिटाने के लिए आपको तप करना पड़ेगा। तप का मतलब यही है कि धीरे-धीरे जीवन को संयम की कसौटी में कसते जाओ। धीरे-धीरे एक-एक बस्तु छोड़ते जाओ। (अजी! आराम से खाओ-पियो, और आराम से भजन करो, शरीर को कष्ट क्या देना है, आत्मा को कष्ट क्या देना है? यह नासमझ लोगों का फर्मूला है।) जब आप इंद्रियों को पूरा सुख देते रहोगे, तब आपसे भजन हो ही नहीं सकता।जेष्ठमास की एकादशी का निर्जला व्रत करो और फिर रात को सो कर दिखाओ- हर दस मिनट बाद घड़ी देखोगे कि-कब प्रातःकाल हो और जल पी लें। जल क्यों नहीं पी रहे, क्योंकि व्रत किया हुआ है। भगवान् के नाम से जल का त्याग किया हुआ है। जहां कष्ट होता है वहीं स्मरण होता है। जिनको प्रेमाभक्ति प्राप्त हो चुकी है, उनकी बात छोड़ दो, बाकी साधन-विधि यही है कि पहले शरीर को तपाना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।