राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथमः स्कंधः प्रथम स्कंध में सत्य स्वरूप परमात्मा को प्रणाम करते हुए, निष्कपट धर्म भागवत धर्म है, इसका वर्णन किया गया है। श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रारंभ में शौनकादि महर्षियों के द्वारा छः प्रश्न किए गये। 1- मानव जीवन का श्रेय क्या है? 2- समस्त शास्त्रों का सार क्या है? 3- भगवान के अवतार का प्रयोजन क्या है, क्यों भगवान अवतार लेते हैं? 4- भगवान अवतार लेकर क्या करते हैं? 5- भगवान के कुल कितने अवतार हुए? 6- भगवान लीला पूरी करके जब अपने धाम चले गये तो धर्म किसकी शरण में गया।
इन्ही छः प्रश्नों के उत्तर में श्री सूत जी ने संपूर्ण भागवत सुनाया है। सर्वप्रथम भक्ति की महिमा का वर्णन किया। भगवत तत्व को श्रवण करने से हृदय में भक्ति उत्पन्न होती है। आप बड़ों की सेवा, संतों की सेवा और धर्म के प्रति श्रद्धा रखते हैं। तभी कथा सुनने को रूचि उत्पन्न होती है और जब कथा श्रवण की रूचि होती है, तभी कथा सुनने को मिलती है। कथा का फल है- हृदय का प्रक्षालन, हृदय का जब प्रक्षालन हो जाता है। तब ह्रदय में भगवान् की भक्ति स्थिर होती है, दृढ़ होती है, यही भवसागर से मुक्ति का साधन है। जब भक्ति के द्वारा ह्रदय में भगवत साक्षात्कार कर लेते हैं। तब हृदय की ग्रंथियों का भेदन हो जाता है।
जीवन के सारे संशय मिट जाते हैं, पाप पुण्य जितने कर्म हैं, जो बंधनकारक हैं समाप्त हो जाते हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्ध आश्रम एवं वात्सल्य धाम का पावन स्थल, महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- ‘श्री दिव्य चातुर्मास महा महोत्सव पितृपक्ष के पावन अवसर पर पाक्षिक श्रीमद्भागवतकथा के प्रथम स्कंध की कथा, श्री सुखदेव जी के आगमन की कथा का गान किया गया। कल की कथा में द्वितीय स्कंध से कथा का गान किया जायेगा।