पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रीशुकदेवजी का अंतिम उपदेश-श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को चतुर्विध प्रलय का वर्णन कह सुनाया। परमार्थ का उपदेश किया। शुकदेव जी बोले राजन् ! तुम मरने वाले नहीं हो, मरता है यह शरीर। क्योंकि जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु निश्चित है। तो जन्म शरीर का हुआ है, इसलिए मृत्यु भी इस शरीर की ही होगी। तुम तो अजन्मा हो। आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। राजा तुम मोक्ष की चिंता न करो, क्योंकि तुम्हें कोई बंधन ही नहीं है। आत्मा में बंधन वास्तविक है ही नहीं, कल्पित है। अज्ञान के कारण ही उसको बंधन लगता है, होता है। यह बंधन ही कल्पित है राजन! जिसकी कथा मैंने तुम्हें सुनायी, उस प्रभु से मैं, तुम और यह सकल संसार कुछ जुदा नहीं है। यह ज्ञान जो मैंने दिया, वह भी उसी का रूप है। यह अपनी जो आत्मा है वह ब्रह्म का ही अंश है, मैं भी वही हूं, सब कुछ ब्रह्म का अंश है। वेद के महावाक्यों के द्वारा ब्रह्म, माया और जीव का बोध कराया। राजन! आज सातवें दिन की संध्या है। अब तक्षक आयेगा, तुझे डसेगा। मैं यह सब देखने के लिए यहां रहना नहीं चाहता, किंतु जब तक मैं यहां बैठा हूं। तक्षक नहीं आ सकता। अभी भी कुछ पूँछना हो, कुछ शंका हो तो पूँछ लो। राजा परीक्षित ने नमस्कार किया। सिद्ध हुआ! अनुग्रहीत हुआ!आपने हरि कथा सुनायी, कथा के माध्यम से हरिदर्शन करवाया है। बारहवां स्कंध सुन रहा हूं तो भगवान् का ऊँचा किया हुआ वाम कर कमल मुझे दिखाई पड़ रहा है, मानो ठाकुर जी मुझे बुला रहे हैं। छोड़ सबको, सब उपायों को,और आजा मेरी शरण में! प्रभु ! अब तो मैं उतावला हो रहा हूं, प्रभु के पास जाने के लिए। अब मुझे कोई डर नहीं है, भले तक्षक आये, और मुझे डसे, मैं तो ठाकुर के पास जाने वाला हूं। राजा को मृत्यु के भय का निवारण हुआ। भय का निवारण यही भागवत का फल है। भय से मुक्ति यही मुक्ति है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।