पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कर्म तीन प्रकार के होते हैं। प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण। संचित कहते हैं जो करोड़ों जन्मों किये है, पाप और पुण्य उनको संचित कहते हैं और क्रियमाण कहते हैं जो आज हम कर रहे हैं। प्रारब्ध कहते हैं उसको जो संचित में से कुछ हिस्सा निकालकर शरीर बना दिया है। इस शरीर में आपको इतना दुःख इतना सुख भोगना पड़ेगा। क्योंकि पहले आपने यह कर्म किये हैं। तो जो हिस्सा निकालकर शरीर बना दिया गया उसको प्रारब्ध कहते हैं। वह प्रारब्ध का फल तो आपको भोगना ही पड़ेगा। चाहे आप भजन करो चाहे पाप करो। बाकी जो संचित और क्रियमाण दो हैं, भजन कर लो तो दोनों कट जायेंगे और प्रारब्ध भोग के कट जायेगा। तीनों कर्मों से मुक्त होके भगवान को पा जाओगे। और अगर आपने भजन नहीं किया तो प्रारब्ध को भोगना पड़ेगा और जो संचित और क्रियमाण ये फिर प्रारब्ध वनके आपको बार-बार दुःख देते रहेंगे। इसीलए कभी-कभी हम देखते हैं कि भजन करने वाले लोग दुःखी हैं और पाप करने वाले लोग सुखी हैं। हमको लगता है कि पाप का फल तो सुख है और भजन का फल दुःख है। नहीं, नहीं, नहीं ऐसा कभी मत सोचना। वह जो प्रारब्ध आया है, प्रारब्ध मान लो किसी का पुण्यमय है, और अब वह पाप कर रहा है तो प्रारब्ध उसका क्षय नहीं होगा तब तक तो वह सुख पायेगा। अब वह जो गलत काम कर रहा है ये आगे चलके फिर उसके प्रारब्ध में जब आयेंगे तो फिर उसको दुःख मिलेगा और कोई व्यक्ति भजन करता हुआ भी दुःखी है, इसका ये मतलब नहीं है कि भजन का फल दुःख है, उसके पाप का फल सुख नहीं है। इसका मतलब भी पूर्व प्रारब्ध ही है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।