पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा,श्री कृष्ण- काम का त्याग तप है ? ‘ कामत्यागस्तपः स्मृतः ।’ क्योंकि काम से कामनाओं का जन्म होता है। कामनाएं मानव के जीवन में दुःख का कारण बनती हैं, अतः काम पर काबू पाना तप है। यद्यपि व्यावहारिक पक्ष में भूखे रहना, पंचाग्नि तपना, व्रत से तन को सुखाना, सर्दी में ठंड से और गर्मी में गर्मी से तपना तप कहलाता है। यम, नियम में इसकी विस्तृत चर्चा शास्त्रों में की गई है। काम की पूर्ति के लिए अर्थ की अधिक आवश्यकता होती है। एक विवाहित व्यक्ति की आर्थिक जिम्मेदारियां अविवाहित व्यक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। विवाह के बाद उसकी इच्छाओं और कामनाओं में पत्नी की अथवा पति की, फिर संतान की और फिर उनके आगे परिवार की भी इच्छाएं और कामनाएं जुड़ती जाती है। कामनाएं ही पाप करवाती है। अतः इनका त्याग ही बड़ा तप है। वैसे भी त्याग में जो सुख है, वह भोग में नहीं है।सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्करजिला -अजमेर (राजस्थान)