पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ षष्टम दिवस श्री रुक्मणी कृष्ण विवाह-व्यास जी के वचनरूप सरोवर में महाभारत रूप कमल खिला है और महाभारत रूप कमल की जो सुगंध है, सुरभि है, उत्कट गंध है, उसका नाम ही श्रीमद्भगवद्गीता है। किसी को दान दिया है, तो दान लेने वाले की जिम्मेदारी बनती है कि उसका सही उपयोग करे। मगर जिसको दान दिया है उनकी परीक्षा करते रहना ठीक नहीं है। इससे दान की महिमा कम होती है। चिंता जरूर करो लेकिन निंदा न करो। जो संपत्ति देते हैं उससे भी महान वह हैं जो समय देते हैं और उससे भी महान वह हैं जो सेवा देते हैं। केवल धन से मंदिर नहीं चलता, रूपए से बढ़कर है संस्था के प्रति समर्पित कार्य करना। हे जीव तू अपने अंदर ही देख, तुझमें अखंड आनंद का सागर भरा पड़ा है। एकदम करीब, बस अपने हृदय में ही। जो अंतर ज्योति पुरुष है, वही आत्मा है। शरीर के अंदर चलो, अपने अंदर चलो। अपने अंदर जो यह जग जगमगाती ज्योति है वही आत्मा है। इस स्थूल शरीर से भी इंद्रियां अधिक प्रिय होती हैं इंद्रियों से भी अधिक प्रिय अपना प्राण होता है प्राण से भी अधिक प्रिय अपनी आत्मा होती है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।श्री दिव्य घनश्याम धाम श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।