जम्मू कश्मीर। कश्मीरी पंडितों सहित घाटी के अन्य विस्थापितों की अचल संपत्तियों से कब्जे हटाकर उन्हें मालिकाना हक दिलाया जाएगा, मजबूरी या दबाव में बेची गई संपत्ति भी उन्हें लौटाई जाएगी। इसके लिए मंगलवार को उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने ऑनलाइन पोर्टल का शुभारंभ किया। इस पोर्टल पर दर्ज शिकायतों का लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत समय बद्ध तरीके से निस्तारण होगा। शिकायतकर्ता को ऑनलाइन ही उसकी शिकायत पर हुई कार्यवाही की जानकारी मिलती रहेगी। सभी उपभोक्ता विस्थापितों की ऐसी संपत्तियों का शिकायत मिलने के बाद 15 दिन में सर्वे और भौतिक सत्यापन कर रजिस्टर को अपडेट करेंगे। साथ ही इसकी रिपोर्ट कश्मीर के मंडलायुक्त को सौंपेंगे। एलजी मनोज सिन्हा ने कहा कि 1990 से विस्थापन का दंश झेल रहे हिंदू, सिख एवं मुस्लिम कश्मीरियों को इससे न्याय मिलेगा। पिछले 13 महीनों में उन्होंने विभिन्न समुदायों के कई प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की है। वह सभी विस्थापितों के सम्मानजनक वापसी के समर्थक हैं। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि इतिहास में हुई गलतियों को सुधारा जाए, सभी नागरिकों से अपील है कि वे प्रशासन का इस काम में सहयोग करें। भाईचारे का नया उदाहरण पेश करें, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों को आत्मसात करते हुए कानून का राज स्थापित करने तथा सौहार्दपूर्ण समाज की स्थापना करने की कोशिश की जा रही है। श्री सिन्हा ने आगे कहा कि 60000 परिवार घाटी से विस्थापित हुए थे। इनमें से 44000 ने जम्मू-कश्मीर राहत संगठन में पंजीकरण कराया है, इनमें से 40142 हिंदू, 2684 मुस्लिम तथा 1730 सिख परिवार है। कई परिवार देश के अन्य हिस्सों में बस गए हैं। वर्ष 1989-90 में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के चलते पैतृक घर छोड़कर विस्थापन होने के लिए लोग विवश हुए थे। इस मुद्दे को हल करने के लिए 2 जून 1997 को जम्मू कश्मीर विस्थापन अचल संपत्ति अधिनियम लगाया गया, इसमें संबंधित जिलों के डीसी को विस्थापित संपत्तियों का कस्टोडियन नामित किया गया। इस पर सही तरीके से काम नहीं हो पाया।