पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि क्या आपको मालूम नहीं है कि जो व्यक्ति तप करता हुआ छल या कपट करता है, उसका तप ऐसे नष्ट हो जाता है जैसे- फूटे हुए घड़े का पानी बह जाता है। भजन करने वाला छल या कपट करेगा, तब उसका तप संचित नहीं होगा। यदि तुम्हारे जीवन में त्रुटियां हैं, तब तुम्हारा तप उन त्रुटियों से बाहर निकलता जाएगा। अंत में आप गुरु और भगवान् को दोष दोगे और भजन छोड़ दोगे। दोष न गुरु का है न भगवान् का है, दोष अपने कर्मों का है। व्यक्ति गलत कर्म करता हुआ भजन करता है और भजन का फल जब नहीं मिलता, फिर गुरु और भगवान् को दोष देता है। अपने कर्मों को सुधारते हुए, सावधान होकर भजन करो। उसके बाद भी यदि सिद्धि न मिले तब मान लेना कि कोई पुराना गलत कार्य प्रारब्ध में आ गया है इसलिए हमें सिद्धि नहीं मिल रही है। कर्म का ही फल होता है। व्यक्ति के शिष्टाचार से उसके कुल की परीक्षा होती है।
गलत व्यक्ति होगा उसमें पवित्रता नहीं होगी, यदि होगी तो बहुत कम होगी। वैष्णव कुल में पैदा होने वाले के आचार-विचार अलग होंगे। शिष्टाचार से कुल की परीक्षा और शरीर से भोजन की परीक्षा हो जाती है। वार्तालाप से शास्त्र-ज्ञान की परीक्षा हो जाती है। जब व्यक्ति बात करता है तब पता चलता है कि कितना पढ़ा लिखा है। उसकी वाणी में, शब्दों में, गंभीरता उसके शास्त्र-ज्ञान का संकेत देती है। नेत्रों से स्नेह का पता चल जाता है। चार प्रकार की आंखें होती हैं। उज्जवल, सरस, वक्र और लाल। मित्र को जब मित्र देखता है तब नेत्र उज्जवल होते हैं, उज्जवल दृष्टि से दोनों खिलखिलाकर मिलते हैं। जब पिता पुत्र को देखता है, तब नेत्रों में सरसता होती है। हृदय का ममत्व नेत्रों को सरस बना देता है। प्रेम की आंखें टेढ़ी होती हैं और क्रोध में आंखें लाल हो जाती हैं। नेत्रों से व्यक्ति के हृदय का परिचय मिलता है।उसके मन के भावों का बोध होता है। संपूर्ण शरीर में नेत्र ही व्यक्ति के भावों को प्रगट करते हैं।आत्मा का प्रकाश नेत्रों के कांच से ही बाहर निकलता है। सब कुछ हो लेकिन नेत्र न हो, तब व्यक्ति के लिए चौबीस घंटे रात्रि है। उसको देख कर कोई हंस रहा है या रो रहा है, मुस्करा रहा है या व्यंग कर रहा है, या प्रेम दर्शा रहा है उसे कुछ पता चलने वाला नहीं है। वह अंधेरे में है। इसलिए नेत्र बने रहने चाहिए। नेत्र बड़े कीमती हैं। हमें-आपको मिले हैं। इसलिए इनकी कीमत मालुम नहीं है। जिनके नहीं हैं या छिन गए हैं, उनसे पूछो कि नेत्र कितने कीमती हैं। नेत्र-ज्योति आत्म-ज्योति का संकेत है। आत्मा की ज्योति ही बाहर निकलकर बाहर की वस्तुओं को प्रकाशित करती है। जैसे तार के अंदर प्रकाश दिखाई नहीं देता, बल्ब में आकर प्रगट हो जाता है, इसी प्रकार आत्मा का प्रकाश हमारे अंदर की नस रूपी तारों से नेत्र रूपी बल्ब में आकर रूप का प्रकाश करता है, रूप का दर्शन करवाया करता है। नेत्र आत्मा की ज्योति के निकलने का केंद्र है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।