नई दिल्ली। डीडीए की लैंड पूलिंग पॉलिसी के तहत शहरीकृत किए गए 89 गांवों के किसानों के उत्तराधिकारियों के समक्ष अपनी ही कृषि भूमि से वंचित होने की नौबत आ गई है। गत एक-डेढ़ साल के दौरान जिन किसानों की मृत्यु हो गई है उनकी कृषि भूमि उनके उत्तराधिकारियों के नाम पर नहीं हो पा रही है। यह समस्या भविष्य में भी अन्य किसानों के उत्तराधिकारियों के समक्ष भी आने की संभावना रहेगी। दरअसल ये गांव शहरीकृत होने के कारण उनके राजस्व रिकॉर्ड में दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) बंद कर दिया गया है। इसके अलावा कृषि भूमि की गिरदावरी भी नहीं की जा रही है। डीडीए की लैंड पूलिंग पॉलिसी के तहत वर्ष 2017 में 89 गांवों का दर्जा ग्रामीण गांव से शहरीकृत गांव कर दिया गया। दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग ने गत वर्ष इन गांवों का राजस्व रिकॉर्ड डीडीए को सौंप दिया है। इसके बाद से इन गांवों के किसानों के समक्ष दो प्रकार की दिक्कत पैदा हो गई है। खास तौर पर वे अपनी भूमि की म्यूटेशन नहीं करा पा रहे हैं। इसके अलावा फसल बर्बाद होने पर सरकार से मुआवजा नहीं मिल रहा है। झुलझुली निवासी दीपक यादव बताते हैं कि इन गांवों में शामिल प्रत्येक गांव के 25 से 30 किसानों के परिजन म्यूटेशन कराने के लिए धक्के खा रहे हैं। उनकी न तो राजस्व विभाग में सुनवाई हो रही है और न ही डीडीए उनका कार्य कर रहा है। दरअसल इन उनके घर के मुखिया किसान की मृत्यु हो गई। उधर मुबारिकपुर निवासी विजेंद्र सिंह के अनुसार कृषि भूमि के म्यूटेशन के मामले में राजस्व विभाग व डीडीए के अधिकारी किसानों को एक-दूसरे विभाग के पास भेज रहे हैं। किसानों से राजस्व विभाग के अधिकारी कहते हैं कि उनका म्यूटेशन डीडीए करेगा, जबकि डीडीए अधिकारी बताते हैं कि म्यूटेशन का मामला राजस्व विभाग के अधीन होता है। इस कारण वे राजस्व विभाग के अधिकारियों के पास जाएं।