पुष्कर/राजस्थान। राष्ट्रीय संत श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू। सत्संग के अमृत बिंदु:- समय का सदुपयोग करो। संपत्ति का सदुपयोग करो। मनुष्य संपत्ति और समय का दुरुपयोग करता है, क्योंकि उसका अधिक समय फैशन और व्यसन में जाता है। समर्थ होकर भी जो सहन करे, वही संत है। समाज में पाप प्रगट हो जाये तो पाप की आदत छूटती है। समाज-सुधार की भावना उत्तम है।किंतु उसके पीछे अहंकार आता है। समृद्धि में ज्ञान-बोध नहीं रहता। दरिद्र नहीं होने तक वह आता भी नहीं। सहारा लेना हो तो ईश्वर का लो, किसी और का नहीं। सहिष्णुता सुख देती है। संत अत्यधिक सहिष्णु होते हैं। सांसारिक पदार्थों में आसक्ति मत रखो। सांसारिक प्रवृत्ति एकदम मत छोड़ो। उन्हें विवेक से कम करो। सांसारिक विषय संसारी जीवों को बार-बार जलाते हैं। सांसारिक विषयों में अरुचि हो तो ईश्वर में रुचि बढ़ेगी। ईश्वर को छोड़कर लौकिक कार्यों को महत्व न दो। यदि महत्व दोगे तो भगवान तुम्हारे लौकिक कार्यों को अधिक बिगाड़ेंगे। सांसारिक सुख भोगने की लालसा हो तो समझना कि तुम अभी सोये हुए ही हो। साक्षात्कार होने के बाद सावधान रहना। परमात्मा की अनुभूति होने के बाद जो भजन छोड़ता है, वह गिरता है। सात्विक आहार से सहिष्णुता आती है। भूख सहन करने से व्यक्ति सुखी होता है। सात्विक वातावरण हृदय को सुधरता है। दूषित वातावरण हृदय को बिगाड़ता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला अजमेर (राजस्थान)।