स्थिरता ही साधना का है आधार: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, स्थिरता दो प्रकार की है- तन को एक स्थान पर देर तक टिकाना और मन को इधर-उधर भागने से रोककर एक स्थान पर टिकाना। तन और मन का शरीर और वस्त्र का सा साथ है। यदि तन डोलेगा तो मन भी भटकेगा। साधना में जगह-जगह तन और मन को भटकने से रोकना होता है। इस तरह स्थिरता साधना का आधार है। यदि शरीर टिक जायेगा तो मन भागेगा जरूर, पर अंत में उसे भी टिकना होगा । एक संत ने कहा है कि- मन जाय जहां जान दे, स्थिर कर राख शरीर।
मन चंचल है, उस पर सहज विजय कठिन है, परंतु तन को स्थिर रखना बस में है। पहले इसे बस में करें, धीरे-धीरे मन भी स्थिर हो जायेगा। मन के स्वामी बनकर जियो, मन के नौकर नहीं। जैसे सारथी घोड़े की लगाम को खींच कर रखता है इसी तरह बुद्धि, मन को खींच कर रखें तो यह मन भी स्थिर होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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