पटना। बिहार की राजधानी पटना में नौकरी की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे शिक्षक अभ्यर्थियों की बर्बरता पूर्वक पिटाई की घटना ने प्रदेश की जहां छवि खराब की है वहीं यह घटना अमानवीय और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। प्रदर्शन का अधिकार तो संविधान ने दिया है लेकिन किसी प्रदर्शनकारी की निर्मम पिटाई किया जाना मानवाधिकार का उल्लंघन है। इससे दो तरफ से बदनामी हो रही है, एक तरफ तो अभ्यर्थियों का मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न हो रहा है।
वहीं दूसरी तरफ सरकार की छवि पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। नौकरी की मांग को लेकर बिहार के कोने- कोने से शिक्षक अभ्यर्थी पटना में एकत्र होकर प्रदर्शन कर रहे थे। इसी बीच पहुंची पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। हद तो तब हो गई जब एडीएम (विधि व्यवस्था) स्वयं लाठी लेकर अंग्रेज अफसर की तरह एक अभ्यर्थी पर टूट पड़े। वह अभ्यर्थी अपने हाथों में तिरंगा लिए हुए था।
अफसर की पिटाई से वह तो गिर गया लेकिन झण्डे को नहीं गिरने दिया। प्रशासनिक अधिकारी ने तिरंगे पर डण्डा बरसाना शुरू कर दिया, जो उनके अमानवीय रवैये को उजागर करता है। हालांकि घटना की जानकारी मिलते ही राज्य सरकार हरकत में आ गई, क्योंकि नौकरी उसकी प्राथमिकता में है और इसके लिए नए सिरे से कवायद शुरू की है।
ऐसे में प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई सरकार की छवि के लिए जरूरी है। यही कारण है कि उपमुख्य मंत्री तेजस्वी यादव ने जांच समिति गठित कर लाठी चलाने वाले प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। बर्बरतापूर्वक पिटाई अक्षम्य अपराध है, इसलिए सरकार को ऐसे अधिकारियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए जो अन्य के लिए सबक बने। एक कड़ी सजा जिसके बाद आगे इस तरह तानाशाह बनने की कोशिश कोई भी अधिकारी न कर सके।