लद्दाख। पूर्वी लद्दाख में पिछले 45 दिनों में चीनी वायुसेना के विमानों का एलएसी के बेहद करीब बार-बार आने पर कड़ा विरोध जताते हुए भारत ने दो-टूक कहा कि चीन वायुसेना क्षेत्र में उकसाने वाली हरकतों से बाज आए। भारत के इस कड़े विरोध के बाद लद्दाख के चुशूल-मोल्दो सीमा पर दोनों देशों के बीच विशेष सैन्य वार्ता हुई।
इस वार्ता में भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के दस किलोमीटर के दायरे में चीनी विमानों के उड़ान भरने का मुद्दा उठाया और कड़े शब्दों में चीनी विमानों को पूर्वी लद्दाख से दूर रहने को कहा। भारत और चीन के बीच यह विशेष दौर की सैन्य वार्ता ऐसे समय हुई है जब चीन कई देशों के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है।
इस समय उसका ताइवान, अमेरिका और जापान के साथ तनाव चरम पर है। पिछले दिनों अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान की सफल यात्रा के बाद जापान की यात्रा से चीन बौखलाया हुआ है। चीन की बौखलाहट का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने नैंसी पर प्रतिबन्ध लगाने के साथ अमेरिका के खिलाफ कई कूटनीतिक कदम उठाते हुए उसके साथ कई मुद्दों पर चल रही बातचीत को रोक दिया है। चीन का चौतरफा विरोध उसकी सीमा विस्तार की महत्वाकांक्षी योजना के लिए तगड़ा झटका है।
डोकलाम में मुंह की खाने और लद्दाख में भारत से पंगा लेने का खामियाजा वह भुगत चुका है। इन दोनों घटनाओं ने उसे भारत की सैन्य ताकत और तैयारियों के आगे घुटने पर खड़ा कर दिया है जिससे वह तिलमिलाया हुआ है। भारत की बढ़ती सैन्य क्षमता से चीन को शिकायत है। तिब्बत में अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र को लेकर भी वह चिन्तित है।
इसलिए अब वह भारत को घेरने के लिए सीमावर्ती देशों की सीमाओं का उपयोग करने की रणनीति पर कार्य कर रहा है। इसी के तहत उसने अपने जलपोत को श्रीलंका के हम्बरटोटा बंदरगाह पर तैनात करने के लिए रवाना कर दिया है। चीन के कर्ज में डूबे श्रीलंका की इस बंदरगाह को चीन के हवाले करना बड़ी भूल है। यह श्रीलंका और भारत दोनों के हित में नहीं है। चीन की हर गतिविधि पर भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।