टोक्यो। जापान की राजधानी टोक्यो में रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध और हिन्द प्रशान्त क्षेत्र की चुनौतियों के सन्दर्भ में होने वाली क्वाड देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक कई मामलों में महत्वपूर्ण है। भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया को शामिल कर 2007 में बना क्वाड समूह एक मजबूत शक्ति के रूप में उभर रहा है। इसमें आपसी सहयोग और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने पर विशेष जोर देने के साथ ही यूक्रेन संकट और हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के प्रश्न पर भी ठोस निर्णय लिये जाने की उम्मींद है।
चीन की अवैध तरीके से मछली पकड़ने की गतिविधियों पर निगरानी रखने के तंत्र की शुरुआत करने का प्रारूप भी तैयार कर लिया गया है। इसके तहत हिन्द महासागर और दक्षिण-पूर्वी एशिया से लेकर दक्षिण प्रशान्त तक अवैध मछली पकड़ने की गतिविधियों के निगरानी तंत्र को सेटलाइट तकनीक से जोड़ने की योजना तैयार कर ली गयी है। मजबूत घेरेबन्दी की कार्ययोजना से चीन की बौखलाहट बढ़ गयी है। चीन हमेशा से क्वाड का विरोधी रहा है और इस समूह को वह अपने खिलाफ साजिश मानता है, जबकि वास्तविकता यह है चीन की अवैध गतिविधियां और हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में वर्चस्व बढ़ाने की उसकी कुटिल मंशा के बावजूद क्वाड निरन्तर मजबूत हो रहा है।
चीन ने फिर बयान दिया है कि क्वाड सम्मेलन सफल नहीं होगा। यह भी खास बात है कि डेढ़ दशक में क्वाड में मजबूत साझेदारी हुई है और भविष्य में भी यह और मजबूत होगा। सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के अतिरिक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और आस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री एंथनी अल्बनीज टोक्यो में है। यूक्रेन संकट के दौर में यह पहला अवसर है जब प्रधान मंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति आमने-सामने होंगे और उनमें वार्ता भी होगी। साथ ही जापानी प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा और जापान की 35 कम्पनियों के सीईओ से भी प्रधान मंत्री मोदी की वार्ता काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। क्वाड सम्मेलन पूरी तरह से सफल होने की आशा है, जिसमें अनेक महत्वपूर्ण सहमतियां और निर्णय होंगे। चीन के लिए यह परेशानी और उसकी चिन्ता बढ़ाने वाला है। पूरी दुनिया की निगाहें क्वाड सम्मेलन के निर्णयों पर टिकी हुई है।