नई दिल्ली। लगभग एक दर्जन सेमीकंडक्टर निर्माता देश में स्थानीय कारखाने लगाना शुरू हो गया है और अगले दो से तीन वर्षों में इसका उत्पादन शुरू कर देंगे। यह जानकारी सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक इंटरव्यू में दी है। सरकार द्वारा पिछले हफ्ते देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले बोर्ड उत्पादन के लिए एक उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को मंजूरी देने के बाद यह जानकारी सामने आई है। चिप निर्माण उद्योग के लिए एक संपूर्ण इकोसिस्टम विकसित करने और भविष्य में किसी भी कमी से बचने के लिए सरकार जनवरी से प्रोत्साहन योजनाओं के तहत आवेदन लेना शुरू कर देगी। सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही है। सभी बड़े खिलाड़ी भारतीय भागीदारों के साथ बातचीत कर रहे हैं और कई यहां अपने प्लांट लगाने के लिए सीधे आना चाहते हैं। सरकार द्वारा एप्रूव की गई पीएलआई योजना में अगले पांच से छह वर्षों में देश में सेमीकंडक्टर निर्माण में 76,000 करोड़ रूपये के निवेश की परिकल्पना की गई है। जबकि सरकार ने पहले ही योजना को अधिसूचित कर दिया है, उसे उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों के भीतर कंपाउंड सेमीकंडक्टर यूनिट्स, और डिजाइन और पैकेजिंग कंपनियों को मंजूरी मिल जाएगी। सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि अगले 2-3 वर्षों में, हम देख रहे हैं कि कम से कम 10-12 सेमिकंडक्टर का उत्पादन शुरू हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि कम से कम 50-60 डिजाइनिंग कंपनियों ने समय सीमा में उत्पादों को डिजाइन करना शुरू कर दिया होगा। देश में चिप निर्माण के लिए पीएलआई योजना ऐसे समय में आई है, जब दुनिया भर के ऑटो उद्योग को पुर्जों की कमी के कारण उत्पादन में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस कदम से देश के ऑटो सेक्टर को काफी मदद मिलने की उम्मीद है। महामारी के बाद चिप की मांग आसमान तक पहुंच गई है, क्योंकि कंज्यूमर टेक उत्पादों की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। पिछले साल लॉकडाउन के तहत लगे प्रतिबंधों से आवाजाही लगभग बंद हो गई थी। जिससे दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में कंज्यूमर टेक उत्पादों की खपत बढ़ गई और निर्माताओं से चिप्स की मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है। चिप निर्माताओं ने भी अपनी उत्पादन क्षमता को उसी के मुताबिक स्थानांतरित कर दिया। बाद में जब ऑटो उद्योग ने फिर से कामकाज शुरू किया और माइक्रोचिप्स की मांग में काफी इजाफा हुआ, तो एक बड़ा संकट पैदा हुआ क्योंकि चिप निर्माता मांग को पूरा करने में नाकाम थे।